छायावाद ] १३३ [ 'हरिऔध' होगी ? इतिहास यह नहीं बतलाता। जो रत्न हमारी सफलता का सम्बल है, उसको फेंक कर हमारी इष्ट-सिद्धि नहीं हो सकती। भविष्य बनाने के लिए वर्तमान आवश्यक है, परन्तु भूत पर भी दृष्टि होनी चाहिये । हम योग्य न हों और योग्य बनने का दावा करें, हमारा ज्ञान अधूरा हो और हम बहुत बड़े ज्ञानी होने की डींग हाँके, हम कवि-पुंगव होने का गर्व करें और साधारण कवि होने की भी योग्यता न रखें, छाया- वाद की कविता लिखें और यह जाने भी नहीं कि कविता किसे कहते हैं, धूल उड़ायें प्राचीन कविवरों की और करने बैठे कवि-कर्म की मिट्टी पलीद; तो बताइये हमारी क्या दशा होगी १ हम स्वयं तो मुँह की खायेंगे ही, छायावाद की आँखें भी नीची करेंगे। आजकल छायावाद के नाम पर कुछ उत्साही युवक ऐसी ही लीला कर रहें हैं । मेरी उनसे यह प्रार्थना है कि यदि उनमें छायावाद का सच्चा अनुराग है तो अपने हृदय में वे उस ज्योति की छाया पड़ने दें, जिससे उनका मुख उज्ज्वल हो और 'छायावाद' का सुन्दर कविता-क्षेत्र उद्भासित हो उठे। मेरा विचार है कि छायावाद कविता-प्रणाली का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। जैसे पावस का तमोमय पंकिल काल व्यतीत होने पर ज्योतिर्मय स्वच्छ शरद ऋतु का विकास होता है वैसे ही जो न्यूनताएँ 'छायावाद' के क्षेत्र में इस समय विद्यमान हैं वे दूर होंगी और वह वांछनीय पूर्णता को प्राप्त होगी। किन्तु यह तभी होगा जब युवक-दल अपनी इष्ट-सिद्धि के लिए भगवती वीणापाणि की सच्ची आराधना के लिए कटिबद्ध होगा। किसी किसी छायावादी कवि का यह विचार है कि जो कुछ तत्व ङ्केहै वह सामाद की कविता में ही है । कविता-सम्बन्धी और जितने विभाग हैं वे तुच्छ ही नहीं, तुच्छातितुच्छ हैं और उनमें कोई सार नहीं । अपना विचार प्रकट करने का अधिकार सबको है, किन्तु विचार प्रकट करने के समय तथ्य को हाथ से न जाने देना चाहिये । जो
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