छायावाद 1 १२५ [ 'हरिऔध' दी है । किन्तु अब तक तर्क-वितर्क चल रहा है और कोई यह निश्चित नहीं कर सका कि वास्तव में नूतन प्रणाली की कविताओं को क्या कहा जाय । इस पर बहुत लेख लिखे जा चुके हैं, पर सर्व-सम्मति से कोई बात निश्चित नहीं की जा सकी। छायावाद की अनेक कविताएँ ऐसी हैं जिनको रहस्यवाद' की कविता नहीं कह सकते, उनको हृदयवाद कहना भी उचित नहीं, क्योंकि उसमें अतिव्याप्ति दोष है । कौन सी कविता ऐसी है जिससे हृदय का सम्बन्ध नहीं ? ऐसी अवस्था में मेरा विचार है कि 'छायावाद' नाम ही नूतन प्रणाली की कविता का स्वीकार कर लिया जाय तो अनेक तर्कों का निराकरण हो जाता है। यह नाम बहुत प्रचलित है और व्यापक भी बन गया है। रहस्यवाद' शब्द में एक प्रकार की गम्भीरता और गहनता है। उसमें एक ऐसे गंभीर भाव की ध्वनि है जो अनिर्वचनीय है और जिस पर एक ऐसा आवरण है जिसका हटाना सुगम नहीं। किन्तु 'छायावाद' शब्द में यह बात नहीं पायी जाती। जिसमें कोई अज्ञेय दृष्टिगत न हो, परन्तु कम से कम उसका प्रतिबिम्ब मिलता है और कविकर्म के लिए इतना अवलम्बन अल्प नहीं। इसलिये रहस्यवाद शब्द से छायावाद शब्द' में स्पष्टता और बोधगम्यता है। छायावाद का अनेक अर्थ अपने विचारानुसार लोगों ने किया है। परन्तु मेरा विचार यह है कि जिस तत्व का स्पष्टीकरण असम्भव है, उसकी व्याप्त छाया का ग्रहण कर उसके विषय में कुछ सोचना, कहना, अथवा संकेत करना असंगत नहीं। परमात्मा अचिन्तनीय हो, अव्यक्त हो, मन-वचन-अगोचर हो, परन्तु उसकी सत्ता कुछ न कुछ अवश्य है। उसकी यही सत्ता संसार के वस्तुमात्र में प्रतिबिम्बित और विराजमान है। क्या उसके आधार से उसके विषय में कुछ सोचना-विचारना युक्तिसंगत नहीं। यदि युक्ति- संगत है तो इस प्रकार की रचनात्रों को यदि छायावाद' नाम दिया जाय तो क्या वह विडम्बना है ? यह सत्य है कि वह अनिर्वचनीयत्व
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