छायावाद ] १२३ ['हरिऔध' - संस्कृत का एक सिद्धान्त है-'समय एव करोति बलाबलम्' । समय ही बल प्रदान करता है और अबल बनाता है। मेरा विचार है कि यह समय क्रान्ति का है। सब क्षेत्रों में क्रान्ति उत्पन्न हो रही है तो कविता- क्षेत्र में क्रान्ति क्यों न उत्पन्न होती ? दूसरी बात यह है कि आजकल योरोपीय विचारों, भावों और भावनाओं का प्रवाह भारतवर्ष में बह रहा है। जो कुछ विलायत में होता है उसका अनुकरण करने की चेष्टा यहाँ की सुशिक्षित मण्डली द्वारा प्रायः होती है। इस शताब्दी के प्रारम्भ में ही रहस्यवाद' की कविताओं का प्रचार योरप में हुआ । उमर खय्याम की रुबाइयों का अनुवाद योरप की कई भाषाओं में किया गया जिससे वहाँ की रहस्यवाद की रचनाओं को और अधिक प्रगति मिली । इन्हीं दिनों भगवती वीणापाणि के वरपुत्र कवीन्द्र रवीन्द्र ने कबीर साहब की कुछ रहस्यवाद की रचनाओं का अँगरेज़ी अनुवाद प्रकाशित किया और उसकी भूमिका में रहस्यवाद की रचनात्रों पर बहुत कुछ प्रकाश डाला । इसके बाद उनकी गीतांजली के अँगरेजी अनुवाद का योरप में बड़ा आदर हुआ और उनको 'नोबल प्राइज़' मिला। कवीन्द्र रवीन्द्र का योरप पर यदि इतना प्रभाव पड़ा तो उनकी जन्मभूमि पर क्यों न पड़ता । निदान उन्हीं की रचनात्रों और कीर्ति-मालाओं का प्रभाव ऐसा हुआ कि हिन्दी भाषी प्रान्तवाले भी उनकी इस प्रकार की रचनाओं का अनुकरण करने के लिए लालायित हुए । उनकी रचनाओं का असर यहाँ की छायावाद की कविताओं पर स्पष्ट दृष्टिगत होता है। कुछ लोगों ने तो उनका. पद्य का पद्य अपना बना लिया है। हमारे प्रान्त के हिन्दी भाषा के कुछ प्राचीन ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें रहस्यवाद की रचना पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। ऐसी रचना उन लोगों की है जो अधिकतर सूफी सम्प्रदाय के थे। इस प्रकार की सबसे अधिक रचना कबीर साहब के ग्रन्थों में मिलती है । जायसी के 'पदमावत' और 'अखरावट' में भी इस प्रकार की अधिक कविताएँ हैं। यह स्पष्ट है.
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