खड़ी बोली और उसका पद्य] ११४ ... 'हरिऔध' नवयुवकों को उसी शैली को ग्रहण करने की अनुमति देता हूँ। पद्यों के उदाहरण ये हैं:- रस मिले. सरसावन सौ गुनी। विलस मंजु विलासवती बने । कर विमुग्ध सकी किसको नहीं। कुसुमिता न मिता वनिता लता ।। फरहरा हमारा था नभ में फहराया। सिर पर सुरपुर ने था प्रसून बरसाया।। था रत्न हमें देता समुद्र लहराया । था भूतल से कमनीय फूल फल पाया। हम-सा त्रिलोक में सुखित कौन दिखलाता। था कभी हमारा यश वसुधा-तल गाता॥ राह में आँखें बिछाई सोच यह । पंखड़ी कोई न पाँवों में गड़े। पाँवड़े में डालता क्यों दूसरे। पाँवड़े मेरी पलक के है पड़े॥ वर्तमान अवस्था और रहस्यवाद खड़ी बोली के इतिहास में वर्तमान अवस्था को हम सन्तोषजनकः कह सकते हैं । इस समय उसका अधिक प्रचार हो रहा है और आधुनिक. युवकमण्डल की दृष्टि इस ओर विशेषतया आकृष्ट हो गयी है। मासिक पत्रों में आजकल खड़ी बोली की उत्कृष्ट कविताएँ निकल रही हैं। उनका यथोचित समादर भी हो रहा है और उल्लेखयोग्य कविता-ग्रन्थ भी लिखे जा रहे हैं । सबसे विशेष हर्ष की बात यह है कि इन दिनों शृंगार रस का प्रवाह एक प्रकार से बन्द हो गया है और सब ओर देशानुराग, जाति-प्रेम, समाज-सुधार इत्यादि की ताने सुनायी दे रही हैं । हमारी आँखें.
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