खड़ी बोली और उसका पद्य खड़ी बोली का अान्दोलन-युग समाप्त हो गया है और अब वह बहुत कुछ समुन्नत हो गयी है। इस समय यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि अब वही हिन्दी-पद्य की व्यापक और प्रधान भाषा है। इसका बहुत कुछ श्रेय श्रीमान् पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी, श्रीयुत पं० नाथूराम शंकर शर्मा, श्रीयुत पं० रामचरित उपाध्याय, श्रीयुत बाबू मैथिलीशरण गुप्त, श्रीयुत पं० गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही', बाबू जयशंकर प्रसाद, श्रीयुत लाला भगवानदीन तथा पं० गोकुलचन्द्र शर्मा प्रभृति खड़ी बोली के प्रमुख उन्नायकों को है, जिनमें कई एक प्रसिद्ध और सफल ग्रंथकार भी हैं। इन लोगों की लेखनी के चमत्कार से खड़ी बोली का उद्यान सुसजित एवं श्रीसम्पन्न हुआ है और अर्धशताब्दी के भीतर उसने इतना महत्व लाभ किया है जो एक चकितकर व्यापार कहा जा सकता है। भारतीय हृदय' और 'भारतीय आत्मा' की रचनाएँ भी अपूर्व हैं । यद्यपि वे बहुत अधिक नहीं हैं, फिर भी जितनी हैं, खड़ी बोली के पद्य का गौरव हैं । वास्तविक बात तो यह है कि 'भारतीय हृदय' ने भारत का हृदय और 'भारतीय अात्मा' ने भारत की आत्मा दिखलाने की सच्ची चेष्टा की है। ऊपर जिन भावुक सज्जनों का नामोल्लेख हुत्रा
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