ब्रजभाषा और खड़ी बोली] १०१ [ 'हरिऔध' अतएव उनके परस्पर सम्बन्ध की रक्षा न्यायानुमोदित है। अन्य भाषा के शब्दों से खड़ी बोली पर ब्रजभाषा का विशेष स्वत्व है, इसलिये उसका बिलकुल बायकाट विडम्बना है । उर्दू के कवि अब तक ब्रजभाषा शब्दों का आदर करते हैं, फिर खड़ी बोली के कवि उसका अनादर क्यों करें ? हाँ उनको समधिक संयत होना चाहिये । उर्दू के वे अशार प्रमाण-स्वरूप नीचे लिखे जाते हैं—जिनमें ब्रजभाषा शब्दों का प्रयोग हुआ है, ऐसे शब्द' छोटे अक्षरों में दिये गये हैं- सुबह गुजरी, शाम होने आई 'मोर'। . तू न चेता औ बहुत दिन कम रहा।-मीर हाय ! क्या चीज गरीबुल वतनी होती है । बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव धनी होती है। हाफिज कमसिनी है तो जिदें भी हैं निराली उनकी। इस पै मचले हैं कि हम दर्द जिगर देखेंगे।-फसाहत जग में आकर इधर-उधर देखा। तूही आया नजर जिधर देखा ।-मीर दर्द सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा। हम बुलबुलें हैं उसकी वह गुलसिताँ हमारा---अकबाल शुद्ध शब्दों के प्रयोग के विषय में मुझको इतना ही कहना है कि यह प्रवृत्ति बहुत अच्छी है । इसने खड़ी बोली के कवियों को च्युत-दोष और शब्दों के तोड़-मरोड़ से बहुत बचाया है-जहाँ ब्रजभाषा में इस दोष की भरमार है, वहाँ खड़ी बोलचाल की कविता इससे सुरक्षित है। अतएव इस अंश में आक्षेप मान्य नहीं; परन्तु इसका दूसरा पहलू भी है, इसलिये इधर समुचित दृष्टि होना आवश्यक है। वह यह कि खड़ी
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