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काव्य के विभाग और अनंत की झाँकी समझी जाती है। हमारे यहाँ के भकि मार्ग में इसे 'अचिन्त्यैश्वर्यं-योग' कहते हैं। | माधुर्य-पक्ष । | असामान्यता, दीप्ति, चमत्कार इत्यादि से सर्वथा स्वतंत्र आकर्षण माधुर्य का है। इस गुण के अधिष्ठान का असामान्य, अलौकिक या दीप्त होना आवश्यक नहीं । सामान्य से सामान्य, तुच्छ से तुच्छ वस्तुओं और दृश्यों में माधुर्यं का पूरा अाकर्षण रहता है। महाकवि कालिदास ने बरसात में चारों ओर दिखाई पड़नेवाले खुमी के पौधों, तुरंत के जुते खेतों की सोंधी मिट्टी, और भ्रूविलासानभिज्ञ' गाँव की सीधी सादी स्त्रियों और पुरानी कहानी कहते हुए बुड़ों तक में इस माधुर्य का साक्षात्कार किया है। परम भावुक अँगरेज़ कवि वर्डसवर्थ ( wordsworth ) का हृदय पगडंडी के किनारे उगे हुए गर्द से मैले तुच्छ से तुच्छ फूल के पौधे ( Meanest flower ) को भी अपनाता था। हृदय की पूरी व्यापकता हम दीप्ति और माधुर्य, असामान्य और सामान्य, दोनों पक्षों के रसात्मक ग्रहण में मानते हैं। साहित्य की पुस्तकों में सब अवस्थाओं में पाई जानेवाली रमणीयता’ को माधुर्यं कहा है' सर्वावस्थाविशेषेषु माधुय्यै रमणीयता ।। | : -[ साहित्य-दर्पण ५-६७] | १ [ मेघदूत, पूर्वमेघ-११, १६, १३ ।] ३ [To me the meanest flower that blows can give Thoughts that do often lie too deep for tears. -Ode on Intimations of Immortality from Recollections of Early Childhood.]