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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा दारुण दशा का निवेदन किया है। उक्त आदि-काव्य के भीतर लोकमंगल की शक्ति के उदय का आभास ताड़का और मारीच के दमन के प्रसंग में ही मिल जाता है। पंचवटी से बह शक्तिः जोर पकड़ती दिखाई देती है। सीताहरण होने पर उसमें अत्मिगौरव और दांपत्य प्रेम की प्रेरणा का भी योग हो जाता हैं। ध्यान देने की बात यह है कि इस आत्मगौरव और दांपत्य प्रेम की प्रेरणा बीच से प्रकट होकर उस विराट मंगलोन्मुख गति में समन्वित हो जाती हैं। यदि राक्षसराज पर चढ़ाई करने का मूल कारण केवल आत्मगौरव या दांपत्य प्रेम होता तो राम के ‘कालाग्नि-सदृश क्रोध' में काव्य का वह लोकोत्तर सौंदर्य न होता । लोक के प्रति करुणा जब सफल हो जाती हैं, लोक जब पीड़ा और विघ्न-बाधा से मुक्त हो जाता है, तब रामराज्य में जाकर लोक के प्रति प्रेम-प्रवर्तन का, प्रजा * के रंजन का, उसके अधिकाधिक सुख के विधान का, अवकाश मिलता है ।। जो कुछ ऊपर कहा गया है, उससे यह स्पष्ट है कि काव्य का उत्कर्ष केवल प्रेमभाव की कोमल व्यंजना में ही नहीं माना जा सकता जैसा कि टाल्सटाय के अनुयायीं या कुछ कलावादी कहते हैं। क्रोध आदि उग्र और प्रचंड भावों के विधान में भी, यदि उनकी तह में करुण-भाव अव्यक्त रूप में स्थित हो, पूर्ण सौंदर्य का साक्षात्कार होता है। स्वतंत्रता के उन्मत्त उपासक, घोर परिवर्तनवादी शैली के महाकाव्य The Revolt of Islam [दि रिवोल्ट आव् इसलाम] के नायक-नायिका अत्याचारियों के पास जाकर उपदेश देनेवाले गिड़गिड़ानेवाले, अपनी साधुता, सहनशीलता और शांत वृत्ति का चमत्कारपूर्ण प्रदर्शन करनेवाले नहीं हैं। वे उत्साह की उमंग में प्रचंड वेग से युद्धक्षेत्र में बढ़नेवाले; पाषंड, लोकपीड़ा