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सर्ग-बद्ध महाकाव्य में मनुष्य जाति के उद्धार में रत नायक औ । नायिका (Laon and Cythna ) में मंगल-शक्ति के अपूर्व संचय की छटा दिखाकर तथा उनके द्वारा एक बार दुरादीत अत्याचार के पराभव के मनोरम अभास से अनुरंजित करके अंत में उस शक्ति की विफलता की विषादमयी छाया से लोक को फिर आवृत दिखाकर छोड़ दिया है ।

जैसा ऊपर कह् आए हैं, मंगल-अमंगल के द्वंद्व में कवि लोग अंत में मंगल-शक्ति की जो सफलता दिखा दिया करते हैं उसमें सदा शिक्षावाद ( Didacticism ) या अस्वाभाविकता की गंध समझकर नाक भौं सिकोड़ना ठीक नहीं। अस्वाभाविकता तभी आएगी जब बीच का विधान ठीक न होगा अर्थात् जब प्रत्येक अवसर पर सत्पात्र सफल और दुष्ट पात्र विफल या ध्वस्त दिखाए जायँगे । पर सच्चे कवि ऐसा कभी नहीं करते। इस जगत् में अधर्म प्रायः दुर्दमनीय शक्ति प्राप्त करता है जिसके सामने धर्म की शक्ति बार बार उठकर व्यर्थ होती रहती है । कबि जहाँ मंगल-शक्ति की सफलता दिखाता है वहाँ कला का दृष्टि से सौंदर्य का प्रभाव डालने के लिये ; धर्मशासक की हैसियत से डराने के लिये नहीं कि यदि ऐसा कर्म करोगे तो ऐसा फल पाओगे । कवि कर्म-सौंदर्य के प्रभाव द्वारा प्रवृत्ति या निवृत्ति अंतःप्रकृति में उत्पन्न करता है, उसका उपदेश नहीं देता ।

कवि सौंदर्य से प्रभावित रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करना चाहता है। किसी रहस्यमयी प्रेरणा से उसकी कल्पना में कई प्रकार के सौंदर्यो, का जो मेल आपसे आप हो जाया करता है उसे पाठक के सामने भी वह प्रायः रख देता है , जिस पर कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा मेल क्या संसार में बराबर देखा जाता है। मंगल-शक्ति के अधिष्ठान राम और