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रस-मीमांसा

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३९८ रस-मीमांसा सूचना उदाहरणों से यह स्पष्ट नहीं है कि पदांशगत केवल असंलक्ष्य क्रम में ही हो सकता है।) अभिज्ञानशाकुतंल से दिए गए उद्धरण ‘चलापांगां दृष्टिं' इत्यादि में हताः ( मरा ) शब्द प्रकृतिगत ध्वनि का उदाहरण बताया गया। है । ( हुन्टमारना )। किंतु यह शब्द लक्ष्यार्थ के अनंतर व्यंग्य को ब्यंजित करता हैं इसलिये यहाँ लक्षणामूलक ध्वनि है। किंतु असंलक्ष्यक्रम अभिधामूलक ध्वनि के अंतर्गत है, लक्षणामूलक ध्वनि के अंतर्गत नहीं। निम्नलिखित उदाहरण के रूप में गृहीत हो सकते हैं( क ) प्रत्यय या अव्ययगत—चमारों तक ने चंदा दिया। ( ख ) मुखड़ा, सधुक्कड़। वर्ण और रचना के व्यंग्यों के उदाहरण वैदर्भी रीति के माधुर्य व्यंजक व आदि तथा अन्यत्र खोजने चाहिए। संकर और संसृष्टि ध्वनि संकर-जहाँ विभिन्न प्रकार की ध्वनियों का एक ही आश्रय ( शब्द और अर्थ ) हो या वे अन्योन्याश्रित हों तो संकर ध्वनि होती है, जैसे पीनस्तनों से सुशोभित दीर्घ और चंचल नेञवाली प्रिय के आगमन के महोत्सव में द्वार पर खड़ी हुई मांगलिकपूर्ण कलश और कमलों की बंदनवार बिना यत्न के ही संपादित कर रही है । यहाँ व्यंग्य रूपक अलंकार ( स्तन= कलश और नेत्र= कमल-तोरण) तथा व्यंग्य श्रृंगार दोनों एक ही आश्रय में हैं। १ [ अत्युन्नतस्तनयुगा तरलायताक्षी द्वारि स्थिता तदुपयानमहोत्सवाय ।। सा पूर्णकुम्भनवनीरजतोरणलक् संभारमङ्गलमयत्वकृतं विधते ।। –साहित्यदर्पण, पृष्ठ १९५ । ]