पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४०८

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शब्द-शक्ति ३९५ कल्पद्रुम में वसंत की अन्योक्ति उदाहरण का काम देगी । उस पद्य में ‘माधव’ और ‘द्विज' शब्द के स्थान पर उनके पर्यायवाची नहीं रखे जा सकते । इसलिये शब्द-शक्युद्भव है, किंतु इन :::: शब्दों को पर्यायवाची शब्दों से बदल सकते हैं )। पदगत और वाक्यगत ध्वनि| पद्य के केवल एक पद में जो ध्वनि होती है वह पदगत कहलाती हैं, जो अनेक पदों में होती है वह वाक्यगत कहलाती है । ( यह विभाजन तर्कपूर्ण नहीं जान पड़ता ; वस्तुतः विशिष्ट पद या पदों पर आश्रित व्यंग्य को पदगत ही कहना चाहिए ) । उदाहरण अर्थातरसंक्रमितवाच्य ध्वनि पदगत-उसी के नेत्र नेत्र होंगे जिसके सामने यह तरुणी होगी। अर्थातरसंक्रमितवाच्य ध्वनि वाक्यगत-देख ! मैं तुझसे । कहता हूँ यहाँ विद्वानों की मंडली हैं अपनी बुद्धि को स्थिर करके। काम करना । लक्ष्यार्थ—मैं=तुझसे ज्ञानवृद्ध और तेरा हितकारी; १ [ हितकारी ऋतुराज तुम साजन जग प्रारम् । सुमन सहित शाखा मारो दलहिं कतै अभिराम ।। दलहि झरौ अभिराम कामप्रद द्विजगुन गावें । लहि सुवास सुखधाम मातबर ताप नसावें ।। बरनै दीनदयाल हिये माधव-श्रुनि प्यारी । श्रवन सुखद् सुक-नैन बिमल विलसें हितकारी ।। ४ ।। २ [ धन्यः स एव तरुण नयने तस्यैव नयने च ।। "युवजनमोहनविद्या भवितेयं यत्य संमुखे सुमुखी ।। -साहित्यदर्पण, पृष्ठ १८३ । ] ३ [ त्वामस्मि वच्मि विदुषां समावायोऽत्र तिष्ठति । आत्मीयां मतिमाथाय स्थितिमत्र विधेहि तत् ।। -वही, पृष्ठ १८३ । ]