पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४०६

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शब्द-शक्ति आरोप के कारण रूपक अलंकार है, जो कविकल्पित हैं। इसके द्वारा आप पृथ्वी पर रहते हुए स्वर्ग के निवासियों का उपकार करते हैं। यह विभावना अलंकार व्यंग्य है। ( लेखक [ साहित्यदर्पणकार ] ने पात्रों ( नायकादि ) की उक्तियों के उदाहरण को पृथक् माना है। उनका कहना है कि कविप्रौढाक्ति की अपेक्षा कविनिवद्धवक्ता की प्रौढोक्ति में विशेप चमत्कार होता है क्योंकि वे उक्तियाँ ऐसे व्यक्तियों की होती हैं जो स्वयं उसका अनुभव करनेवाले होते हैं। ‘रसगंगाधर' ने यह बात नहीं मानी है।) कविनिवद्धवक्ता की प्रौदोक्ति से सिद्ध बलु द्वारा व्यंग्य वस्तु‘हे. सुमुखि ! इस खुए के वचे ने किस पर्वत पर कितने दिनों तक क्या तप किया हैं कि यह तुम्हारे ओठ के सदृश लाल बिंबफल का स्वाद ले रहा है। सुग्गे का तप कल्पित वस्तु हैं। व्यंग्य वस्तु यह है कि रमणी के अधरों की प्राप्ति बड़ी तपस्या से होती है । यद्यपि यहाँ पर प्रतीप अलंकार है तथापि वह व्यंग्य वस्तु को व्यंजित नहीं करता। वक्ता की प्रौढोक्तिसिद्ध वस्तु से व्यंग्य अलंकार-हे सखि ! वसंत में काम के बाणों ने करोड़ों की संख्या प्राप्त करके पंचता छोड़ दी और वियोगिनियों को पंचता प्राप्त हुई । १ [ देखिए साहित्यर्पण, विमला टीका, पृष्ठ १८२।] २ [ शिखरिणि क नु नाम कियञ्चिरं किमभिधानमसाबकरोत्तपः । सुमुखि येन तबाधरपाटलं दशति बिम्बफलं शुकशाचकः ।। -वही, १४१ । ] ३ [ सुभगे कोटिसंख्यव्र भुपेत्य मदनाशुगैः ।। वसन्त पञ्चता त्यक्ता पञ्चतासीद्वयोगिनाम् ।। --वही । ]