पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३९४

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হার-ঘড়ি के चपरासियों तक ने कुछ चंदा दिया–प्रत्ययनिष्ठ शक्ति का उदाहरण हो सकता है।) तीन प्रकार की व्यंजनाएँ दिखाई पड़ती हैं-वस्तु-व्यंजना, भाव-व्यंजना और अलंकार-व्यंजना। इसके अन्य भेद शाब्दी या अर्थी हैं। इनमें से शादी व्यंजना के दो भेद हैं-अभिधामूलक और लक्षणामूलक । शादी व्यंजना ( १ ) अमिधामूलक-‘संयोग आदि के कारण अनेकार्थी। शब्दों का एक अर्थ निर्दिष्ट कराके जब अभिधा रुक जाती है। और उसके उपरांत जत्र उन्हीं शब्दों को लेकर दूसरे अर्थ की प्रतीति होती हैं, तब वह दूसरा अर्थ अभिधामूलक व्यंजना द्वारा निकलता है। जैसे–‘वह राजा भद्रात्मा हैं, उसने शिलीमुखों का संग्रह किया है, दान से उसका कर सुशोभित है । | सुचना-जहाँ दूसरे अर्थ का बोध कराना भी इष्ट होता है वहाँ श्लेप अलंकार होता है, पर जहाँ दूसरे अर्थ की यों ही प्रतीति मात्र होती है वहाँ अभिधामृलक शाब्दी व्यंजना ही समझनी चाहिए । १ [ संयोगो विप्रयोगश्च साहचथ्य विरोधित । अर्थः प्रकरणं लिंगं शब्दस्यान्यस्य संनिधिः ।। सामर्थ्यमौचिती देशः कालो व्यक्तिः स्वरादयः । शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मृतिहेतवः ।। -वाक्यपदीय, भर्तृहरिकृत ।] २ [ भद्रात्मनो दुरधिरोहतनाबिशालवंशोन्नतेः कृतशिलीमुखसंग्रहस्य । यस्यानुपप्लुतगतेः पवारणत्य दानाम्बुसैकसुभगः सततं करोऽभूत् ॥ -काव्यप्रकाश, द्वितीय उल्लास, १२ ।]