पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३४६

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प्रस्तुत रूप-विधाने ‘नवीनता के लिये नैराश्यपूर्ण आकुलता । सूर्योदय', 'सूर्यास्त आदि बहुत पुराने विषय हैं जिन पर न जाने कितने कवि अच्छी से अच्छी कविता कर गए हैं। अब इन्हीं को लेकर जो नवीनता दिखाना चाहेगा वह मार्मिक दृष्टि के प्रसार के अभाव में सिवा इसके कि नए नए वादों का अंध अनुसरण करे, शब्दों की कलाबाजी दिखाए, पहेली बनाए और करेगा क्या ? पर इस प्रकार के ढकोसलों पर सहृदय-समाज क्यों ध्यान देने जायगा ? वर्तमान कवियों में कमिंग्ज का नाम शायद ही कोई लेता हो । इन नाना ‘वादों से अब पाश्चात्य कवि-मंडली अपना पीछा छुड़ाना चाहूती है। अब किसी कविता के संबंध में किसी ‘वाद का नाम लेना फैशन के खिलाफ माना जाने लगा है। कविता की सच्ची कला किस प्रकार 'वाद' अस्त होकर विलीन होने लगती है। यह बात बिना दिखाई पड़े. कैसे रह सकती हैं। अब कोई ‘वादी समझे जाने में कवि अपना मान नहीं समझते। उन्हें अब यह नहीं कहना पड़ता कि हम व्यक्तिवादी' हैं ( जैसा कि मूर्दिमत्तावादी कहा करते थे ), हम ‘रहस्यवादी या छायावादी हैं ( जैसा कि इंगलिस्तान-आर्यलैंड के उस मरे हुए आंदोलन के कवि कहा करते थे ) अथवा हम प्रकृतिवादी' है (जैसा कि जार्ज-काल के. विगत आंदोलनवाले कहा करते थे ) ।*

  • The modernist poet does not have to issue programme declaring his intentions toward the reader or to issue an announcement of tactics. He does not have to call himself an individualist (as the Imagist poet did ) or a mystic (as the poet of the Anglo-Irish dead movement did ) or a naturalist (as the poet of the Georgian dead movement did ). |

-A Survey of Modernist Poetry.