पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२४०

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भावों का वर्गीकरण २२३ हैं उनके संबंध में भी यही प्रश्न उठता है। यदि कोई . हँसते हँसते थक जाय और उस थकावट के कारण उसे नींद या आलस्य आने लगे तो यह नींद या आलस्य हसन-क्रिया के परिणाम श्रम का परिणाम है, हास्य के भाव का पोषक संचारी नहीं । अतः आलस्य के वर्णन को किसी भाव का संचारी मानना मेरी समझ में ठीक नहीं। उसे स्वतंत्र ही मानना चाहिए। | किसी भाव के वैग के कारण जो मानसिक शैथिल्य होता है उसे ग्लानि' कहते हैं। दु:ख, पश्चात्ताप या शक के आवेग से शिथिल मन का किसी काम की ओर उत्साहित न होना शोक का ग्लानि संचारी कहा जा सकता है। ‘ग्लानि' के लक्षण में दुःख और मनस्ताप से उत्पन्न शैथिल्य के अतिरिक्त परिश्रम, भूख, प्यास आदि से उत्पन्न शैथिल्य भी ले लिया गया है । पर उपर्युक्त विवेचन के अनुसार दुःख और मनस्ताप से उत्पन्न शिथिलता ही संचारी के रूप में कहीं जा सकती है इसी से मैंने ग्लानि को शारीरिक अवस्था में न रखकर मानसिक अवस्था में रखा है। अंग-ग्लानि ‘श्नम' से कुछ भिन्न नहीं प्रतीत होती। अतः उस पर विचार शारीरिक अवस्था के अंतर्गत ‘श्रम में ही किया जायगा। किसी अरुचिकर वस्तु के सामने रहने से भी मन पर जोर पड़ता है इससे उससे उत्पन्न शैथिल्य ग्लानि ही है। किसी बात से ऊब जाना भी ग्लानि ही है। | उन्माद' नामक मानसिक अवस्था राग, शोक, क्रोध, भय आदि कई भावों की भावदशा और स्थायी दशा के कारण उत्पन्न । १ [ रत्यायासमनस्तापक्षुत्पिपासादिसंभवा । ग्लानिर्निष्प्राणताकम्पकार्यानुसाइतादिकृत् ।। -साहित्यदर्पय, ३-१७० ।]