पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२२४

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भावों का वर्गीकरण शब्द या रूप के गोचर होने पर एकबारगी कॅपा या चौंका देनेवाला वेग ‘त्रास है। जिसमें न तो विषय की स्फुट धारणा रहती है, न लक्ष्य-साधन की ओर गति । आरंभ में ही दिखाया जा चुका है कि यह भय का प्रत्यय-बोध-शून्य आदिम वासनात्मक रूप है जो पूर्ण समुन्नत अंतःकरण न रखनेवाले क्षुद्र जंतुओं में होता है और मनुष्य आदि उन्नत प्राणियों में भी किसी किसी अवसर पर देखा जाता है। जिस बेग को प्रेरणा से लोग एकबारगी कर्तव्य शून्य होकर हार मानकर बैठ जाते हैं वह ‘विषाद' है । जैसे, मेघनाद का बध सुनकर रावण को हुआ था। प्रायः ऐसा होता है कि इस आलंबन- नरपेक्ष वेग के उदय के पीछे आलंबन-प्रधान भाव ‘शोक' स्फुरित होता है। त्रास और अमर्ष के संबंध में भी अधिकतर ऐसा ही होता है। कोई व्यक्ति यदि पास ही घोड़ों की टाप सुने तो एकबारगी चौंककर काँप उठेगा ; फिर शत्रु को सामने पाकर ‘भय' नामक भाव का अनुभव करेगा । अमर्ष में भी ऐसा होता है कि पहले किसी का कटु वचन सुनने ही हम क्षुब्ध हो जाते हैं फिर उस कटु वचन कहनेवाले की ओर प्रवृत्त होते हैं। इसी प्रकार राग की पूर्ण अभिव्यक्ति भी इर्ष के उपरांत होती है। पहले नायिका को देख नायक हर्षित होकर तब आलिंगन आदि की ओर प्रवृत्त होता है। अतः संचारियों का यह सामान्य लक्षण लेकर कि वे प्रधान 1 [ निर्घातवियुल्काचैत्रासः कम्पादिकारकः ॥ -साहित्यदपण, ३-१६४] २ [ देखिए ऊपर पृष्ठ १६२ ।] ३ [ उपायाभावजन्मों तु विषादः सवसंचयः । –साहित्यदर्पण, ३१ ६७] १४ |