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रस-मीमांसा

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३०० रस-मीमांसा विरोध-अविरोध के विचार से संचारियों के चार भेद किए जा सकते हैं-सुखात्मक, दुःखात्मक, उभयात्मक और उदासीनः ।। सुखात्मक । दुःखात्मक । उभयात्मक उदासीन गर्व, औत्सुक्य, । लज्जा, असूया, आवेग, स्मृति, वितर्क, मति, हुष, आशा, म, | अमर्ष, अवहित्था, विस्मृति, दैन्य, श्रम, निद्रा, संतोष, चपलता, | त्रास, विषाद, | जड़ता, स्वप्न, वियोध मृदुलता, धैर्य | शंका, चिंता, | चित्त की चंच नैराश्य, उग्रता, जता मोह, अलसता, उन्माद,असंतोष, ग्लानि, अपस्मार, मरण, व्याधि । सुखात्मक भावों के साथ सुखात्मक संचारी और दुःखात्मक भावों के दुःखात्मक संचारी परस्पर अवरुद्ध होंगे। इसी प्रकार सुखात्मक भाव के साथ दुःखात्मक संचारी और दुःखात्मक के साथ सुखात्मक संचारी विरुद्ध होंगे। उभयात्मक संचारी सुखात्मक भी हो सकते हैं और दुःखात्मक भी ; जैसे, आवेग हर्ष में भी हो सकता है और भय आदि से भी। भाव के साथ जो विरोध-अविरोध ऊपर कहा गया है वह जातिगत है अर्थात् सजातीय विजातीय का विरोध है । इसके अतिरिक्त आश्रयगत और विषयगत विरोध जिस भाव या वेग से होगा वह संचारी हो ही नहीं सकता। जैसे, क्रोध के बीच बीच में आलंबन के प्रति यदि शंका, त्रास या दया आदि मनोविकार