पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/९३

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रसिकप्रिया समुझाइ कहौं समुझी सब केसव झूठी सबै हमसौं जु कही हैं मान कियो अपमान करौ तौ हँसौ अब कै हँसिबे को रही हैं।६२। शब्दार्थ-हितु कै = प्रेमपूर्वक । अरु = (अड़ ) हठ । प्रब के = इस बार ( एक बार )। भावार्थ-( नायक-नायिका का संवाद ) ( नायक ) 'प्रेमपूर्वक इधर देखो' । ( नायिका ) 'सब देख चुकी' । ( नायक ) 'अच्छा प्रेम की बातें ही सुनो' । ( नायिका ) 'हाँ, मैंने सब सुन लिया' । ( नायक ) 'यह तो कुछ और ही बात है' । ( नायिका ) ( अगर मेरा हठ समझते हो तो) कसम खाओ ( खाकर बतलायो) कि वहाँ (सपत्नी के यहाँ ) 'तुमने क्या क्या कर्म किए है' ? ( नायक ) 'मैंने तो समझाकर कह दिया। ( नायिका) मैंने समझ लिया कि आपने मुझसे सब झूठी बातें कही हैं । ( नायक ) ( मैं समझ गया ) 'तुमने मान किया है। ( नायिका ) (ऐसा कहकर तो आप मेरा ) 'अपमान कर रहे हैं' । (नायक)(अगर ऐसी बात नहीं है) तो इस बार हँसो तो'। (नायिका) 'मैं तो हँस चुकी (मै नहीं हँसूगी)'। अथ प्रौढ़ा-अधीरा-लक्षण-(दोहा) (१०६) पति को अति अपराध गनि, हतन कहैं हित मानि । कहत अधीरा प्रौढ़ तिहि, केसवदास बखानि ।६३। यथा-( सवैया ) (११०) हौं सुख पाइ सिखाइ रही सिख सीखे न ए सखित हूँ सिखाई। मैं बहुतै दुख पाइहू देख्यौ पै केसव क्योंहूँ कुटेव न जाई। दंड दिये बिनु साधुनिहूँ सँग छूटति क्यों खल की खलताई। देखहु दै मधु की पुट कोटि मिटै न घटै विष की विषमाई ।६४। शब्दार्थ-मधु-शहद । बिषमाई-भयंकरता, कटुता । भावार्ग-( नायिका नायक की उपस्थिति में सखी से कह रही है ) मैं सुखपूर्वक (बिना अपनी अपनी अप्रसन्नता व्यक्त किए) सिखाचुकी, पर इन्होंने शिक्षा नहीं प्रहण की ( कहना नहीं माना ), तूने भी तो सीख दी ( क्या परिणाम हुआ ! कुछ नहीं )। मैंने ( इनकी टेव बदलने के लिए ) बहुत कष्ट उठाकर भी देख लिया, पर इनकी बुरी बान किसी प्रकार छूटती ही नहीं। साधुओं के संग में रहने पर भी खलों की दुष्टता बिना दंड दिए छूटती नहीं। विष में शहद का चाहे. करोड़ों पुट दिया जाय पर विष को कटुता ( शहद को मिष्टता से ) दूर नहीं हो सकती। ६२-देखहु-देखो जू। सब हो-निबही। सब हो-सब है। प्रह-प्रब । ब-जू । तही-तुही । कहो-कह्यो । समुझी०-समुझाइ के । सब-हम । कियों- किए। करौ तो-करै जो ।६३-हतन-हितन । कहे-करे। तिहि-तिय । १४- पाइ-साइ । सखि-सिख । बहुतै दुख पाइ-बहुतैहूँ खवाइ । दंड-बेहु ।