50 तृतीय प्रभाव शब्दार्थ -पय-जल । पावक - अग्नि, बाड़वाग्नि | पीक = पान की। हिये = हृदय में । नखचंद नए = नवीन नखक्षत । चित्र = लेप या चंदन से बने चित्र । उजागर:प्रकट । भावार्थ-( सखी की उक्ति सखी से ) सुदरता ( कांति ) ही जल है,. महावर और पान की लगी पीक ही बाड़वाग्नि है, हृदय (छाती) में (ताजा) लगे हुए नखक्षत ही नए चंद्र ( द्वितीया का चंद्रमा ) है, चित्रित चंदन ही अमृत है, अंजन ही विष है, मणियों के टूटे हुए हार ( ही रत्न फैले हुए). हैं, नेत्रों में भरी हुई नींद ही मदिरा है, जिसके नशे में बेहोश होकर वे इधर उधर घूम रहे हैं। अतः नागरी (प्रवीण नायिका ) और नागर (प्रवीण नायक ) कामक्रीड़ा करने के बाद प्रभात के समय प्रत्यक्ष सागर के वेश में दिखाई पड़ रहे हैं। अथ मध्याधीरादि-भेद-(दोहा ) [१] सिगरी मध्या तीन विधि, धीरा और अधीर । धीराधीरा तीसरी, बरनत हैं कबि धीर ।४। शब्दार्थ-लिगरी = सब । [६२] धीरा बोलै बक्र बिधि, बानी बिषम अधीर । पिय सों देइ उराहनो, सो धीरा न अधीर ।४६ शब्दार्थ---वक्रविधि = व्यंग्य वाणी से। विषम = टेढ़ी, कड़ी, चुभती ।। अधीर = अधीरा। धीरान अधीर = धीराधीरा। अथ मध्या धीरा, यथा-[ सवैया ] [६३] ज्यों ज्यों हुलास सों केसवदास बिलास निवास हि अवरेख्यो। त्यों त्यों बढयो उर कंप, कछूभ्रम भाँति भयो किधौं सीत बिसेख्यो। मुद्रित होत सखी बरहीं मेरे नैन-सरोजनि साँच कै लेख्यो । से जू कह्यो मुख मोहन को अरबिंद सो है सुतौ चंद सो देख्यो ।४७१ शब्दार्थ-- [--हुलास = प्रानंद । विलास-निवास = रतिविलासों का निवास ( स्थल )। हिये -- हृदय ( वक्षस्थल ) में । अवरेख्यो = लक्षित किया। भ्रम- चक्कर । भाँति - समान, सा। बिसेख्यो विशेष रूप में बढ़ गया। मुद्रित होत = बंद होते हुए । वरहीं = बलपूर्वक । लेख्यो = समझा। भावार्थ-( नायिका की उक्ति सखी से ) हे सखी, उल्लासपूर्वक ज्यों ज्यों मैंने उनके वक्षःस्थल पर के रतिचिह्नों को ध्यान से देखा त्यों त्यों मेरे हृदय में कंप होने लगा, कुछ चक्कर सा पाने लगा, किंवा ठंढक की अधिकता ४५--हैं कवि० - सुकधि अमीर । ४६-सों-को। ४७–बढयो-भयो । भांति-भीत। 1
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