पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/८१

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=अन्य। 1 ७२ रसिकप्रिया हो ): उससे मौन नहीं रहा गया । उस (नायिका) ने व्याकुल होकर कहा- 'प्रियतम, कैसी रेखा है, देखें तो' । अलंकार-विशषोक्ति (बुलावतहूँ न बोलै ), पर्यायोक्ति (दूसरी)। (७८) अथ मध्या के चतुर्भेद-(दोहा ) मध्या आरुढ़जोबना, प्रगलभबचना जानि । प्रादुर्भूतमनोभवा, सुरतिबिचित्रा श्रानि ।३२। शब्दार्थ-यानि (ve) प्रथमध्या-अ -आरूढ़यौवना-लक्षण-(दोहा) मध्या आरुढजोबना, पूरन जोबनवंत । भाग सुहाग भरी सदा, भावति है मन कंत ।३३। यथा- ( कबित्त) (50) चंद को सो भाग भाल, भृकुटी कमान ऐसी, मैन कैसे पैने सर नैननि बिलासु है। नासिका सरोज, गंधबाह से सुगंधबाह, दारयों से दसन केसौ बीजुरी सो हासु है। भाई ऐसी ग्रीव-भुज, पान सो उदर अरु, पंकज से पाइ गति हंस की सी जासु है। देखी है गुपाल एक गोपिका मैं देवता सी, सोने सो सरीर सब सोंधे की सी बासु है ।३४। शब्दार्थ-चंद को भाग = चंद्र के भाग सा, प्राधे चंद के समान । "भाल%ललाट। कमान =धनुष । मैन = मदन, कामदेव । पैने = तेज, 'तीक्ष्ण । सर = बाण। बिलासु = खेल, नेत्रों की गति । गंधबाह = सुगंध को वहन करनेवाली, सुगंधित वायु । सुगंधबाह = सुगंध का प्रवाह ( मुखवास )। दारयों - अनार । दसन = दांत । भाई-खराद पर से उतारी हुई (सुडौल)। पान = पत्ता ( पीपल का)। पंकज = कमल । देवता - देवबाला । सोंधे = सुगंध । बासु% वास, सुगंध । भावार्थ-(राखी की उक्ति नायक से ) हे गोपाल, मैंने एक देवबाला सी ( अत्यंत रमणीय ) गोपिका देखी है। उसका भाल चंद्रार्ध के समान है, 'भौंहें धनुषाकार हैं, नेत्रों का विलास काम के तीक्ष्ण बाणों के समान है । नासिका कमल सी, मुखवास सुगंधित पवन के समान है । दाँत अनार के दाने के समान हैं और हास बिजली के समान है । ग्रीवा और भुजाएँ खराद पर से उतारी हुई सी हैं । उदर (पीपल के) पत्र के समान है, चरण कमल की भांति ३२- जानि-जान । प्रानि-म -मान । ३४- ऐसी-की सी। कोसी-कैसी । 2