पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/७१

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तृतीय प्रभाव ७१ तृतीय प्रभाव अथ नायिका-जाति-वर्णन-( दोहा ) (४७) प्रथम पद्मिनी चित्रिनी, जुवती जाति प्रमान । बहुरि संखिनी हस्तिनी, केसवदास बखान ॥१॥ अथ पद्मिनी-लक्षण-( दोहा ) (४८) सहज सुगंध सरूप सुभ, पुन्यप्रेम सुखदानि । तनु तनु भोजन रोष रति, निद्रा मान बखानि ।२। शब्दार्थ-महज = स्वाभाविक । पुन्यप्रेम - पवित्र प्रेम । सुखदानि = सुखदायक । तनु = दुबला, थोड़ा, सूक्ष्म । तनु == शरीर । (४६) सलज सुबुद्धि उदार मृदु, हास बास सुचि अंग । अमल अलोम अनंग भुव, पदमिनी हाटक-रंग ।३। शब्दार्थ -सलज = लज्जावती । वास वस्त्र । अलोम लोमरहित । अनंगभुव-काम-क्रीड़ा की भूमि । हाटक-रंग = सुवर्ण । पद्मिनी, यथा-( कवित्त) (५०) हँसत कहत बात फूल से भरत जात, गूढ़ भूरि हाव-भाव कोक की सी कारिका। पन्नगी नगी-कुमारि आसुरी सुरी निहारि, डारौं वारि किन्नरी नरी गँवारि नारिका । तापै हौं कहा है जाउँ बलि जाउँ केसोदास, रची बिधि एक ब्रजलोचन की तारिका । भौर से भँवत अभिलाष लाख भाँति दिव्य, चंपे की सी कली बृषभान की कुमारिका ।४। शब्दार्थ-भूरि= बहुत । कोक =कोकशास्त्र के रचयिता कोकदेव । की सी = समान । कारिका = ( कोकशास्त्र के ) नियमों के श्लोक । गूढ० = गूढ़ हाव-भावों के निमित्त कोक की कारिका के समान है ( कोक के सूत्रों में जिन हाव-भावों का वर्णन है उनका मूर्तिमान रूप है )। पन्नगी = सपिणी । १-केसव.केसवराइ सुजान । ३ - सलज-सहज । भुव-मू। - सारौं०-वारि डारौं, हारौं नारि । गवारि-गमारि। केसौ. केसोराइ। भवत-भ्रमत।