कृतज्ञता-प्रकाश 'रसिकप्रिया' के इस 'तिलक' के सँजोने में कई हाथ लगे। बंधुवर श्रीमोहनवल्लभ पंत, शिष्यवर श्रीबदरीप्रसाद त्रिपाठी और श्रीराजेंद्रप्रसाद का नामोल्लेख हो चुका है। इधर मेरे प्रिय शिष्य श्रीरामबली पांडेय ने प्रतीकानु- क्रमणी प्रस्तुत की। इसके संधान में कई अनुसंधायकों ने भी योग दिया- प्रस्तावना के कुछ अंश के वाग्लेखन में श्रीगोवर्धनलाल उपाध्याय ने, अनुलेखन में श्रीरामदास ने, ग्रंथों के संकलन में श्रीभचूनाथ दुबे ने और सामग्री-संग्रह में चिरंजीवी श्रीचंद्रशेखर मिश्र ने। इसके प्रस्तुत करने में अनेक हस्तलेखों और नानाविध संबद्ध वाङ्मय का पालोड़न करना पड़ा है। मुख्य सहायता श्रीबालकृष्णदासजी ने की जिन्होंने इसके प्राचीनतम हस्तलेख देकर पाठ- निर्णय का मार्ग अकंटकाकीर्ण किया। साथ ही श्रीलक्ष्मीशंकरजी व्यास ने श्रीदीनदयाल गिरि के प्रशिष्य और श्रीदंपतिकिशोरजी के शिष्य श्रीचुन्नी- लालजी के संग्रह से 'रसगाहकचंद्रिका' का हस्तलेख देकर अर्थनिर्णय में अमूल्य सहायता पहुँचाई । विभिन्न पुस्तकालयों में मेरे शिष्यों को और मुझे अनेक प्रकार की सुविधाएं मिली हैं । सबसे अधिक सहृदयता श्रीकृष्णजी पंत ने दिखाई, जिन्होंने वांछित पुस्तकें यथोप्सित अवधि के लिए देकर कार्य के संपन्न में सहयोग किया। हस्तलेखों के लेखकों, स्वामियो तथा पुस्तकालय के अध्यक्षों-निरीक्षकों सभी उपकारकों के प्रति मैं अपनी विनम्रतापूर्ण कृतज्ञता प्रकाशित करता हूँ। अंत में अपने स्वर्गीय गुरुदेव लाला भगवानदीनजी का प्रणतिपूर्वक स्मरण करता हूँ जिनकी आत्मा के परितोष के लिए ही यह संभार किया गया है । वाणी-वितान भवन ब्रह्मनाल, वाराणसी-१ विश्वनाथप्रसाद मिश्र रंगभरी, २०१५
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