( ३६ ) बाँधे छंद प्रबंध बिधि होत तिलक अति गूढ़ । ताते हौं बातन लिखौं जेहि बूझ मतिमूढ़ ॥ बिनु प्रयास बिनु गुर पढ़े बूझै जेहि सन लोग। ताते यह सब जगतहित्व कियो जगत उतजोग ।। सूरति मिश्र की टीका पद्यों में है और कठिन है इसी से इन्होंने इसे बातन ( गद्य) में लिखा है। इस पर छठी टीका सरदार कवि की है । इस टीका का नाम 'सुखविला- सिका' है। दूसरा नाम 'काशिराजप्रकाशिका' भी है। ये काशीराज्य के राजकवि थे और रघुनाथ बंदीजन के पुत्र थे । टीका का रचनाकाल यों दिया हुआ है- सिवहग गगनों ग्रह सुपुनि रद' गनेस की साल । जेठ सुक्ल दसमी सु गुरु करो ग्रंथ सुखमाल ॥ टीका के निर्माण में उनके शिष्य नारायण ने पूरी सहायता की है । इसका उल्लेख भी इस प्रकार किया गया है- कहुँ कहु नारायन कियो याको तिलक अनूप । चित्तवृत्ति दै करि कृपा मुदित भए सब भूप । उस समय काशीराज्य के शासक थे श्रीईश्वरीनारायणसिंहजी। उनके समय में अनेक साहित्यिक कार्य इस राज्य के द्वारा किए गए। सबसे मुख्य कार्य उस समय रामचरितमानस की टीका का हुआ, जिसका नाम 'परिचर्यापरिशिष्ट- प्रकाश' है । 'परिचर्या' काष्ठजिह्वा स्वामी की टिप्पणी है और 'परिशिष्ट' श्रीईश्वरीनारायणजी की लिखी चूर्णिका । विस्तृत टीका महात्मा श्रीहरिहर- प्रसादजी की लिखी 'प्रकाश' नामक है । आधुनिक युग में रसिकप्रिया की एक चलती टीका श्रीलक्ष्मीनिधि चतुर्वेदी की.१९५४ ई० में प्रकाशित हुई है। प्रियाप्रसाद तिलक प्रस्तुत टीका प्रियाप्रसाद तिलक यद्यपि लिखी गई थी सं० १९८७ में तथापि इसके प्रकाशित होने का अवसर दो युगों के अनंतर अब आया है। सं० १९८७ के श्रावण में मेरे गुरुदेव लाला भगवानदीनजी सहसा रुग्ण हुए और दिवंगत हो गए । उनके शरीरांत के अनंतर उनकी शिष्य-मंडली ने उनके द्वारा छोड़ गए हुए कार्य की पूर्ति का संकल्प किया। केशव के तीन ग्रंथों पर टीका लिखने का विचार था। पर वे दो ही पर टीका लिख सके- रामचंद्रचंद्रिका पर 'केशवकौमुदी' नाम से और कविप्रिया पर 'प्रियाप्रकाश' नाम से । रसिकप्रिया पर उनकी टीका नहीं थी। इसलिए निश्चय किया गया
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