पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/३१

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( ३१ ) राधा राधारमन के कहे जथामति हाव । ढिठई केसवदास की छभियो कबि कबिराव ॥ ६१५७ सप्तम प्रभाव में 'खंडिता' का लक्षण भिन्न है। 'शृंगारतिलक' का लक्षरण यह है- कुतश्चिन्नागतो यस्या उचिते वासके प्रियः । तदगाममसंतप्ता खण्डिता सा मता यथा ॥११७६ 'खंडिता' का अर्थ होता है 'परिस्थितिवश प्रिय पर से जिसके अपनत्व का अभिमान खंडित हो' । यहाँ प्रिय के न आने से जिसको संताप हो वह खंडिता कही गई है । हिंदी में खंडिता का जो लक्षण चला वह रसमंजरी के अनुगमन पर- अन्योपमोगचिह्नित प्रातरागच्छति पतिर्यस्याः सा खंडिता । केशव का लक्षण यों है- प्रावन कहि पावै नहीं प्रावै प्रीतम प्रात । जाके घर सो खंडिता कहै जु बहुबिधि बात ।। ७।१६ यहाँ केशव ने 'पाने की कहकर न आए' लिखकर एक ओर स्थिति स्पष्ट की तो दूसरी ओर 'अन्योपभोगचिह्नित' को छोड़ दिया । उसे 'कहै जु वहुविधि बात' के भीतर रखा है। इसका कारण उनके द्वारा गृहीत प्रच्छन्न- प्रकाश' भेद है। उन्होंने प्रच्छन्न में तो 'उपभोगचिह्नो' का उल्लेख नहीं किया, पर 'प्रकाश' में उनका संकेत किया है । (देखिए ७।१८) । अभिसारिका के इन्होंने तीन विशेषण दिए हैं- हित ते के मद मदन ते पिय पै मिले जु जाइ । सो कहिय अभिसारिका बरनी त्रिविध बनाइ ।। ७।२५ प्रेम, मद ( गर्व ) और मदन ( काम ) से प्रेरित होकर जो प्रिय के पास जाए । इसमें के दो विशेषण तो नाट्यशास्त्र में मिल जाते हैं-मद और मदन । प्रेम नूतन कल्पना है- हित्वा लन्जां समाकृष्टा मदेन मदनेन या। अभिसारयते कान्तं सा मवेदभिसारिका ।। २४१२१२ अष्टम प्रभाव में जड़ता का लक्षण विचारणीय है। 'शृंगारतिलक' में उमका लक्षण यह है- अकाएडे यत्र हुंकारो हष्टिः स्तब्धा गता स्मृतिः । श्वासाः समाधिका: कार्य जस्तेयं मता यथा ॥ २॥१५ लक्षण दिया है- पर केशव ने