पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८६ छुवौ जनि हाथ ।।१४ सू छूटि जात केसव ।११।१ छोरि छोरि बाँधौ ।५।११ जगनायक की नायिका ।३७४ जनी सहेली धाइ ।५।२४ जनी सहेली सोभहीं ७।२६ सू जब चितवै ५५ जहँ गुनगन ।८।२० जहँ परिजन ।१४।१५ जहँ सिँगार ।१६।२ जहँ सुनिये ।१४८ जहाँ दंपती ।१६।४ जहां न मानै ।६।१८ जहां लोभ तें 1१०७ जहाँ हँसहिं ।१४।१२ जहीं जहीं दुरै ।१२।१० जहीं सोक महिं ।१६।६ जाको प्रीतम ७/१६ जाति भई सँग ।५।२१ जातु नहीं कदली ३।१० जानि आगि लागी ।५।३१ जानै कहा मेरी ।१११७ सू जाने को केसव ।५।२३ जानै को पान ।१४।६ जा लगि लांच ।।१२ जिनके मुख ।२।२४ जिनतें जगत ।६३ जिन न निहारे ।६।३८ जिनि बोलि ।११।११ जिन्हें अतन ।६।५ जैसें मिल्यो ।१९।५ जैसे रसिकप्रिया ।१६।१५ जैसो जहाँ न ।१६।१० जो कहूँ देखें ।८।१२ रसिकप्रिया जो कहीं केसव २३ जौ क्योंहूँ।५।१३ जो हौं गनौं ।१३।११ जो हों दिखावन ।१२।९ ज्यों क्योंहूँ .१०१३ ज्यों-ज्यों हुलास ।३।४७ ज्यों बिन दीठि १।१३ झांकि झरोखनि ।६।२३ झूहूँ न रूठियै ।।११ झूठेहीं हँसि ।५७ टूटे ठाट घुन ।१४।३२ तजि तरुनी ७१४२ तन आपने भाए।६।४६ तरकि उठे ।।४. ताको पुत्र प्रसिद्ध । तात को सो।३।४८ तातें रुचि सों ।१।१४ ता नायक की ।३।१४ तासों बसाइ कहा ।१३।१७ तासों मुग्धा ।३।१८ तिन कबि केसवदास ।।१० तिनके चित की।५।१ तूं करिहै ।११८ तेज सूर से ।१४।१६ ते चितयो जु।१०।१५ तें जनु मोहन ।४।८ सू तैसीयै जगत ।१४।१३ तो हित गोइ।३।५६ थिति, तिर्यक |३।४२ थूल अंगुरी ।३।११ थोरी सी सुदेस ।१२।४ दंपति जोबन ६६ दनुज मनुज ।१४१४० दरसन नीके ।४१२ सू