पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२७३

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षोडश प्रभाव शब्दार्थ-बारि दै= त्याग दे, छोड़ दे । न बारि= मत जला । केरी% की। रति काम की पत्नी । रतिनाथ = कामदेव । रति = प्रीति । भेद पारना फूट डालना । भवानि = पार्वती । भानत में-(प्रेम ) तोड़ने में । भारती= सरस्वती। भारती-वाणी, वाक् शक्ति । भावार्थ-(सखी की उक्ति अन्य नायिका से) ऐ पगली, लाखो प्रकार के अभिलाष करना त्याग दे, हृदय में होली मत जला। (तू जो यह चाहती है कि उनमें भेद डाल दिया जाय सो असंभव है )। राधिका और श्रीकृष्ण की प्रीति (प्रेम के लिए प्रसिद्ध युगुल जोड़ियों में से सबसे अधिक है ) रति और काम- 'देव में ( उनकी प्रीति के सामने ) थोड़ी प्रीति दिखाई देती है। उनमें स्वयम् पार्वती भी भेद नहीं डाल सकतीं। यदि स्वयम् सरस्वती भी अपनी वाणी से उनकी प्रीति तोड़ना चाहें तो उनकी वाणी भी कुंठित हो जायगी । उन दोनो की एक ही चाल, एक ही बुद्धि, एक ही मन और एक ही प्राण हैं । देखने के लिए केवल उनके शरीर दो हैं। वे तो ( एक ही से ) दो नेत्रों की जोड़ी से जान पड़ते हैं। सूचना-'एकै गति' से अद्भुत, 'तिन महि०' से वीर, 'राधा हरि केरी प्रीति' से शृंगार और 'लाख लाख भाँति०' से शांतरस है। प्रसादगुणपूर्ण होने से सात्वती वृत्ति है। (दोहा ) इहिं बिधि केस वदास कवि, नवरस बरनि कबित्त । पाँच भाँति अनरस सुनौ, ताहि न दीजै चित्त ।१०। इति श्री मन्महाराजकुमारइंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायां चतुर्विध- कवित्ववृत्तिवर्णनं नाम पंचदशः प्रभावः ।१५। षोडश प्रभाव अथ अनरस-वर्णन-( दोहा) (५१५) प्रत्यनीक नीरस बिरस केसव दुस्संधान । पात्रादुष्ट कबित्त बहु, करहिं न सुकबि बखान ।। अथ प्रत्यनीक-लक्षण-( दोहा) जहँ सिँगार बीभत्स भय, बीरहि बरनै कोइ । रौद्र सु करुना मिलतहीं, प्रत्यनीक रस होइ ।२। १-दुरसंधान - दुस्संधान । बहु--ौं । करहिं न० करतहि कुकबि । २- बीरहि-बिरसहि, बिर हो।