पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२७१

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पंचदश प्रभाव २७५ चारु, अथ भारती लक्षण-(दोहा) (५०८) बरनिय जामें बीररस, अरु अद्भुत रस हास । कहि केसव सुभ अर्थ जहँ, सो भारती प्रकास ।४। यथा-( कबित्त) (५०६) काननि कनकपत्र चमकत धुजा मुलमुली झलकति अति सुखदाइ केसव छबीलो छत्र सीसफूल सारथी सो, केसरि की आड़ अधिरथिक रची बनाइ । नीकोई नकीब सम नीको नकमोती नाक, एक ही बिलोकनि गोपाल तौ गए विकाइ । लोचन बिसाल भाल जरित जराऊ टीको, मानो चढ्यो मीनन के रथ मनमथराइ ।५। शब्दार्थ- -कनकपत्र कर्ण फूल । चक्र = पहिया । झुलमुली= झुमका। सीसफूल = सिर का आभूषण । आड़ = तिलक । अधिरथिक = रथ पर आरूढ़, रथ हाँकनेवाला । नकीब-बंदी, यश गानेवाला भाट । ‘टीको= ललाट पर का एक गहना । मनमथ = मन्मथ, कामदेव । भावार्थ-(सखी की उक्ति सखी से) कानों में सुंदर कर्णफूल चमक रहा है, यही रथ का पहिया है । सुखदायिनी, और अत्यंत झलमलानेवाली झुलमुली (झुमका) ही ध्वज है । शीशफूल ही छबिमान् छत्र है । केसर का तिलक, जो भली भांति लगाया गया है, रथारूढ़ सारथी के समान है । नाक में लगा हुआ नकमोती ही अच्छे भाट के समान है। बड़े बड़े (मछली के से) नेत्रों के ऊपर ललाट पर रत्नजटित टीका तो ऐसा सुशोभित है मानो मछलियों के रथ पर मन्मथराज चढ़े चले जा रहे हैं। गोपाल तो एक ही चितवन में बिक गए, वश में हो गए। सूचना-युद्ध का साज-सामान होने से वीर, 'एक बिलोकनि' से हास्य और 'मीननि के रथ चढ़यो' से अद्भुत रस व्यक्त होता है । अतः भारती वृत्ति है। अथ प्रारभटी-लक्षण-( दोहा) (५१०) केसव जामें रौद्ररस, भय बीभत्सहि जान । भारभटी आरंभ यह, पद पद जमक बखान ।६। शब्दार्थ-जमक – ( यमक ) अक्षरमैत्री, अनुप्रास आदि । ४-बरनिय-बरनै । अरु०-रसमय अद्भुत । ५-अधिरथिक-मधिराधिका, अधिरातिका । नीकोई०-नीकेही नकोब सम नीको मोती नीकी नाक, नीके ही में नीको नाक नीको मोती उरजात । टोको-लाल । चढ्यो-बेगै। ६- वीभत्सहि-बीभत्सक।