पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२६४

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उम्र। २६८ रसिकप्रिया चंचल चितौनि, चित्त अचल, सुभाव साधु, सकल साधु भाव काम की कथान की। बेचति फिरति दधि, लेत, तिन्हैं मोल लेति, हादरा नभी बेटी वृषभान की ।३४१ शब्दार्थ-बैस-( वयस् ) वय, ( तरुण ) तीव्र, अत्यधिक । बानी लघु = बातें थोड़ी कहती है । पर मान = परे का मान. बहुत बड़ा । परभान की = अत्यंत कुशाग्र (बुद्धि) । उर स्तन । बलबीर = बल में वीर (बली); बलराम के भाई (श्रीकृष्ण) । बलबीर-वधान-विधान की 3 बलबीर को बांधने ( वशीभूत करने ) का विधान करनेवाली है। साधु- भला, सीधा । असाधु = बुरा, टेढ़ा। शाचार्य... सखी की उक्ति नायिका प्रति ) हे सखी, तेरी वय तो बाल्य है, पर तेरी ( अंग ) दीप्ति तरुण ( प्रखर ) है। तेरी बातें थोड़ी होती हैं, पर वे बुद्धि की पाकाष्ठा ( वाली बातों ) का वर्णन करती हैं। तेरा निर्मल' हृदय तो कोमल हैं पर स्तन कठोर ( कड़े ) हैं। तू जाति की तो अबला ( स्त्री, निर्बल ) है पर बलवीर ( श्रीकृष्ण, बली) के बांधने का भी विधान करनेवाली है। तेरी चितवन चंचल है, पर चित्त निश्चल (स्थिर) है। तेरा स्वभाव तो भीधा है, पर काम की कथा के सभी टेड़े भाव तुझ में पाए जाते हैं । तू दही तो देती ( वेवती) फिरती है, पर जो उसे मोल लेते ( खरीदते ) हैं, तू उनको ही मोल लेती है ( वे तुझ पर मुग्ध हो जाते हैं)। तूं वृषभानु की वेटी अतरस से भरी हुई है। अलंकारविरोधाभास । अन्यच्च, यथा-( कवित्त) (४६८) ब्रज की कि वै लीने मामिला यहा जानानि यसव सबै नियाहि ।. गोरी गोरो भोरी और गोल थोरी बैस, फिरें देवता सी दोरी नौरो आई को चाहि । बिन तेरी प्रानि सुकुटी जसान तालि, यह अचरज आदि। एते मान दीड ईठ लेश को आडीट गनु, पीठ दै दै मारता पै चूकती न कोऊ ताहि ।३५॥ शब्दार्थ- सुक - सुग्गा । सारिका :- मैना। लोनिका - कोक- शास्त्र के सूत्र । सबै निवाहि-पूरा निर्वाह करके, भली भांति । चाहि ३४-बानी-बानि! बरमत-बरनन । ३५----चोरा चोरी-बोरी चोरा। कुटिल-नयन । मान--पर।