चतुर्दश प्रभाव भांति । पुतरीन = पुतलियाँ । बिचारी = समझो। गतिभेद = नाच की अनेक चालें । नायक = वेश्याओं को नाच सिखानेवाला उस्ताद । निनारी = न्यारा, विलक्षण, चतुर । दीपति = चमक (आँखों की)। उजियारौ प्रकाश । अखारौ=नाच का समाज, नाचरंग । भावार्थ-( सखी का वचन नायक प्रति ) आपको देखकर तो नायिका के नेत्रों में नाच का समाज जुड़ जाता है । पुतलियों को श्वेत और श्याम रंग की काछनी पहने हुए नाचनेवाली समझिए । करोड़ों कटाक्ष ही नाच की अनेक गतियाँ हैं । नचानेवाला उस्ताद चतुर प्रेम है। मृदुहास ही मृदंग की भाँति बजता है। ( आँखों में ) जो ज्योति ( जगती) है वही दीपकों का प्रकाश है । आप देख रहे हैं न ? अलंकार-उपमाभित सावयव रूपक । सूचना-'सरदार' ने अपनी टीका में कहा है कि 'यह छंद मंदहास में उदाहरण देने योग्य है'। किंतु प्रतियों में यह 'कलहास' के उदाहरण में ही मिलता है। अपरंच, यथा [-( सवैया) (४७३) प्रेम घने रस-बैन सने गति नैननि की सर-मैन भई हो । बाल-बहिक्रम-दीपति देह त्रिविक्रम की गति लीलि लई ही। भौंहैं चढ़ाइ सखीनि दुराइ इतै मुसकाइ उतै चितई ही। केसव पाइहौ आजु मलें चित चोरि लै कालि गुवालि गई हो।१०। शब्दार्थ -रस-बैन-यानंद के वचन । सर-मैनकामबाण । बहिक्रम= चयःक्रम, वयःसंधि । त्रिबिक्रम-वह अवतार जिसने साढ़े तीन डग में त्रिलोक तथा बलि का शरीर नाप लिया था। त्रिबिक्रम की० त्रिविक्रम की दीप्ति को भी दबा दिया है। भावार्थ-( सखी का वचन नायक से ) अत्यंत प्रेम और आनंद से युक्त उसने वचन कहे थे। नेत्रों की चाल तो कामबाण की भांति थी। उस बाला के वयःक्रम (वयःसंधि) के कारण उसके शरीर में जो दीप्ति दिखाई पड़ रही थी उसने तो त्रिविक्रम के तेज को भी दबा दिया था ( उस दीप्ति के कारण आप भी उसके वश में हो गए थे )। भौंहें चढ़ाकर सखियों को हटाकर इधर की ओर मुख करते हुए देखकर उसने उधर की ओर देखा था। इस प्रकार जो गोपिका कल आपका चित्त चुरा ले गई थी आज आप उसे निश्चित पाएंगे। १०-सर-रस । मई-मई है। बहिक्रम-बयक्रम । पाइहो-पाइहै । लै- जु । गुवालि-जु प्रालि।
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