5 त्रयोदश प्रभाव २५१ दूसरों के यहाँ) जो मक्खन को चोरी किया करते थे उसकी आपके साथ न रहने पर भी मुझे थोड़ी थोड़ी सुध अब तक बनी हुई है और वह भी यह बात जानती है, क्योंकि लड़कपन से वह आपके साथ ही रह रही है। मेरी यह बुद्धि बुरी ही है ( कि मैं आपको समझाने आती हूँ ) और अधिक क्या कहूँ, हे लाल, मुझे तो यहाँ पैर रखने में लज्जा जान पड़ती है। प्राप इतना अधिक झूठ बोल रहे हैं और उसे अपनी करनी से अभी अभी रुष्ट भी कर चुके हैं । देखिए अभी तक ( नायिका के ) पैरों पर गिरने के कारण ( आपके माथे में लगी) धूल भी नहीं छूटी है और फिर वैसी ही करनी करने लगे। राधा-वचन सखी सों अपरंच-( सवैया) (४६१) आँधी सी धाइ है, दाई दवारि सी, दासिन के दुख देह दही है। ताप के तूल तँबोलिनि, मालिनि, नाइनि नाह के नेह नही है । तेरी सौं तेरी सौं मेरी सखी सुनि तेरी अकेली की आस रही है। कान्ह मिलाउकि मोहिं न पाइहै आपनेजी की मैं तोसों कही है।२० शब्दार्थ---ांधी सी = आंधी की भाँति कष्टप्रद । धाइ = धात्री, धाय । दाइ दाई । दवारि सी = दावाग्नि की भांति कष्ट देनेवाली। दही है = ( मेरी देह ) जल रही है। तूल = ( तुल्य ) समान । नाह == नाथ, प्रिय । नही है - जुड़ी हुई है, संलग्न है ( प्रिय से प्रेम कर लिया है ) सौं = शपथ । सुनि- सुनो। तेरी अकेली = केवल एक तेरी ही। मोहिं नं० = मुझे न पाएगी ( मैं मर जाऊँगी)। सूचना-यह छंद सरदार की टीका और हस्तलिखित प्रतियों में तो है, पर लीथोवाली प्रति में नहीं है। इसमें केशब की छाप भी नहीं है । (दोहा) (४६२) इहि बिधि स्याम-सिँगार-रस, बहु बिधि बरनो लोइ । चारि बरन चहुँ आश्रमनि, कहत सुनत सुख होइ !२१॥ शब्दार्थ-बहु बिधि बरनो लोइ = लोगों ने बहुत प्रकार से वर्णन किया है। (४६३, राधा राधा-रमन के करयो सिँगार सुबेष । रस आदिक आगे कहौं, और रसनि को भेष ।२२। शब्दार्थ-करयो = वर्णन किया है । भेष = स्वरूप । सूचना-यह छंद केवल सरदार की टीका में मिलता है । इति श्रीमन्महाराजकुमारइंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायां सखीजनकर्मवर्णनं नाम त्रयोदशः प्रभावः ।१३। २१-रस-सब । लोइ-सोह।
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