पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२४५

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२४६ रसिकप्रिया शब्दार्थ-झुकिबों = मान करना। हुती थी। गुन मानिहैं = एहसान मानेगी, कृतज्ञ होगी। मनी = ( मन्यु ) अभिमान, गर्व । मोही सों मनी धरी = मुझमे ही तूने अभिमान कर रखा है। भावार्थ-बारंबार फेरते फेरते मैंने किसी प्रकार श्रीकृष्ण का मन फेर लिया, उनके मन के बदल जाने से भाग्य की भली घड़ी हुई ( तेरा भाग्य जागा)! क्षण क्षण पर जिनके पैरों पर तू पड़ा करती थी, उन्हें लाकर तेरे पैरों पर गिराया, मैं स्वयम् उनके पैरों पर गिरी। बड़ी प्रतिष्ठित जाति की बेटियों की बड़ी बड़ाई को हटाकर मैंने बड़ों में भी तुझे बड़ा बनाया। इतने उपकार के बाद मैं तो मन में यह समझती थी कि तू मेरा उपकार मानेगी ( पर तूने सब पर पानी फेर दिया ) । अब मैं भला उसे किस प्रकार मनाऊँ, जब इतना उपकार करने पर भी तू मुझी से अभिमान कर रही है । पुनः-( सवैया (४५७) केसवराय बुलावत हैं चित चारु बिलोचन नीचे करौ जू । कालि करै बर एक बिसौ परौं बीसबिसे ब्रत ते न टरौ जू। आगि लगै तेरे कालि के सीस, परौं पर जाइ बजागि परौ जू। आज मिलौ तौ मिलौं ब्रजहि नाहिं तौ नीके है राज करौ जू१६ शब्दार्थ-कालि करे-कल करे। बर = अच्छा। कालि करै० यदि कल ही कल उनसे मिलो तो अच्छा । एक बिसौथोड़ा ही निश्चय । परौं परसो । वीसविसे = बीसों विस्वा, पूर्ण निश्चय । बजागि = बजाग्नि, भयंकर अग्नि । भावार्थ----( सखी कहती है कि ) श्रीकृष्ण बुला रहे हैं, चित्त को सुंदर लगनेवाले नेत्रों को थोड़ा नीचे तो करो ( मेरी पोर तो देखो, क्रोध से नेत्रों को चढ़ाए मत रहो ) एक बिस्वा अच्छा हो कि कल मिल लो, यदि कल मिलने का पूरा निश्चय न हो तो परसों तो इस (मिलन ) व्रत से एकदम मत टलो ( अवश्य मिलो)। ( इस पर नायिका बिगड़कर कहती है ) तेरे कल के सिर में आग लगे और परसों में फूंका पड़े ( भयंकर आग लगे )। (तब सखी कहती है ) अाज मिलना हो तो श्रीकृष्ण से मिल लो, नहीं तो अपना राज रजो ( फिर उनसे मिलने की आवश्यकता ही नहीं ) । सूचना-यह छंद सरदार की टीका में है तो, पर इसका अर्थ यह कह- कर छोड़ दिया गया है.---'यह कबित्त भी प्राचीन पुस्तकन में नाहीं मिलत ताते नारायण कबि अर्थ याको नाहीं लिख्यो ।' यह हस्तलिखित प्रतियों में मिलता है, किंतु लीथोवाली प्रति में नहीं है । १६- वैसवराय-केसवास । बिलोचन-सुलोचन । नोचे करौ-चेतहु । करै-फले । एक-बीस । टरो-टर । तेरे-तेरी । है-ह।