पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२३६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६ त्रयोदश प्रभाव केसव कपूर पूरि काहे कौं खवावौ पान, जौ पै मन मगन है ऐसे ही बिलास में । वाहि न मनावौ हरि हाहा करि पाइ परि, सब ही सुबास बसै जाके मुखबास में ।३। शब्दार्थ-कुंकुम केसर । उबटि = मलकर । सोंधो सिर लाइ=सिर में सुगंध लगाकर । आँजि माँजि = अंजन लगाकर साफ सुथरी करके, शृंगार करके । प्रकास में = सबके समक्ष । पूरि = डालकर । बिलास = आनंद । वाहि = उसे ( अन्य नायिका को)। भावार्थ-केसर का उबटन लगाकर और केसर के ही जल से स्नान कराके सिर में सुगंध लगाकर इसे रास में क्यों ले आए हो? चंदन चढ़ाकर और फूलमाला पहनाकर, भूल करके बिना किसी मतलब के इसे संवार-सिंगार कर प्रकाश में किया है (सबके सामने लाए हो)। पान में कपूर डालकर उसे क्यों खिलाते हो, यदि आपका मन ऐसे ही विलास में मग्न है तो आप जाकर और पैरों पड़कर विनय करके उसे क्यों नहीं मनाते जिसके मुख की सुगंध में सब प्रकार की सुगंध मिलती है । (व्यंग्य यह है कि तुम दिखाने को तो आप अपनी नायिका लेकर आए हो, पर तुम्हारी दृष्टि में कोई और स्त्री है, उसे ही जाकर संवारिए सिँगारिए )। राधा सों विनय-( सवैया ) (४४५) ऐसेंही क्यों चुप ह्वे रहिहौं सखि हौं सहिहौं सतराहट सौ लौं। क्यों सरिहै मिलिबे बिन तोहि तऊ मिलियै मिलियै दिन जौ लौं । केसव कोरि करौ उपचार मिलै को कहा मिलिहै सुख तो लौं देखि धौं अंगनि पारसी लै मिलिहै पिय सों मन ही मन को लौं।४। शब्दार्थ -सतराहट = झिड़की । सौ लौं = सौ तक (अनेक)। सरिहै = ( काम ) चलेगा। मिलिये दिन जो लौं = जब तक मिलने का दिन मिले । उपचार- उपाय । भावार्थ-मैं इस प्रकार कैसे चुप रहूंगी। मैं तो तेरी सैकड़ों तक झिड़कियाँ सहूँगी और वही बारबार कहूँगी ) । बिना मिले तेरा काम कैसे चलेगा । तब तक मिलते रहना चाहिए जब तक मिलने का दिन ( मौका) ३-दुल - कुकुन जवादिभेद । कुमकुमा०-कुमकुमा के नहवाइ, कुंकु- मान अन्हवाइ । फूलमाल-फूलि फूल, फूले फल, पुनि फूल । आँजि-प्राज । जो पै०-मन जो मगन है जू । ऐसेंही-ऐसेई, वैसेई । ४-हौं सहिौं होत कहा। त:०-तऊ मिलिहै । देखि०-देखिये । मिलिहै-मिलिहौ।