पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२३५

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२४० रसिकप्रिया शब्दाथ-ऐन = ( अयन ) घर । ऐन-सुख-सुख का घर, सुखदायक । मैन ( मदन) काम । कोबिद = चातुर्यपूर्ण । इति श्रीमन्महाराजकुमार इंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायां सखीजनवर्णनं नाम द्वादशः प्रभावः ॥१२॥ , त्रयोदश प्रभाव अथ सखोजनकर्म-वर्णन-(दोहा) (४४२) सिक्षा, बिनय, मनाइबो, मिलवै करि सिंगार । मुकि अरु देइ उराहनो, यह तिनको ब्योहार ॥१॥ शब्दार्थ-सिक्षा सीख । मिलवै= मिलाती है । झुकि = क्रुद्ध होकर । राधिका से शिक्षा-(सवैया) (४४३) नाह लगें मुख सौति दहैं दुख, नाहिं लगें दुख देह दहेगी। नाहीं अबै सुख देति है केसव, नाह सदा सुख देत रहैगो। नाही ते नाही री नाही भलाई, भली सब नाह ही तें पैकहेगो। नाह सों नेह निबाहि बलाइ ल्यौं; नाहीं सों नेह कहा निबहेगो।। भावार्थ-(मानवती नायिका को सखी शिक्षा दे रही है) हे सखी, पति के मुख लगने पर (प्रेम करने पर ) दुःख सौतों को जलाता है और यदि 'नहीं' मुख लगेगी तो वही दुख तेरे शरीर को जलाएगा। 'नहीं' केवल इस समय सुख देती है और पति सदा सुख देता रहेगा। 'नहीं' से मलाई नहीं है, नहीं है । पति के अनुकूल रहने से ही सब भली कहेंगे। इसलिए मैं तेरी बलैया लेती हूँ तू नायक से प्रेम का निर्वाह कर, 'नहीं' से भला क्या प्रेम मिलेगा। सूचना-यहाँ देह को केशव ने संस्कृत के अनुकूल पुलिंग हो रखा है। कृष्ण की शिक्षा-( कबित्त) (४४४) कुकुम उबटि कुमकुमा के न्हवाइ जा, सोंधो सिर लाइ याहि लाए कहा रास में। चंदन चदाइ फूलमान पहिराइ भूलि, वेही काज आँ जि मौलि कीनी है प्रकास में । १-वर्णम-कथन । मिलव-मिलिबो, मिलवहि । करि-करहि । सिंगार- सिंगार । प्रह-2। २-राषिका सों-नायिका सों सिक्षा सखी की, राधिका की सिक्षा प्रकास । दुख देह-मुख देह । तें-री। री-तें। भली-मलो। ही -हिते । बमाइल्यों-री बावरी।