२३२ रसिकप्रिया शब्दार्थ-खोट = खोटा, शरारती ! तुरी = घोड़ा । खूट = पोर, दिशा। अलोक = बदनामी । ताजन = चाबुक, कोड़ा। पोर निबाहू = अंत तक निर्वाह भावार्थ-खोटे शरारती घोड़े की भांति आप जिधर जाते हैं, सीधे चले जाते हैं। ठौर कुठौर को जानकर भी उधर ही जाते हैं। समाज द्वारा मारे गए बदनामी के कोड़े के लगने पर भी लज्जा नहीं आती (आप शोख होते जाते हैं)। अनेक प्रकार के विचारों द्वारा विचार लीजिए तथा जो आपके हितुपा हों उनसे भी पूछ लीजिए, प्रेम के ही साथ लगने से काम बनेगा, नेत्रों का साथ देने से अंत तक निर्वाह नहीं हो सकता (पाप नायिका से प्रेम करके भी जो अपने नेत्रों को बेलगाम छोड़े रहते हैं सो ठीक नहीं)। चुरिहेरिन को वचन राधिका सों, यथा-( कबित्त ) (४३०) मन मन मिलें कहा मिलिहै मिले को सुख, मिलिहू धौं देखहु बोलाइ काहू बाल सों। भूलि परे भौंहनि ही बाँधिहौ कितेक दिन, बाँधौ बलि जाउँ बनमाली बनमाल सों। मुँह मोरें मारें न मरति रिस केसौदास, मारहु धौं मेरे कहें कमल सनाल सों। नैननिहीं बिहँसि बिहँसि को नौं बोलिहौ ज, कबहूँ तो बोलियै बिहँसि मुख लाल सों ।१६। शब्दार्थ-मन मन मिले = केवल मन से मन मिलाने से। कहा : क्या। भूलि = चूक । बनमाली = श्रीकृष्ण । बनमाल सों = वनमाला से अर्थात् स्वागत करके, प्रालिंगन करके । कमल सनाल - मृणालयुक्त कमल (हथेली सहित भुजा)। भावार्थ-केवल मन को मन से मिलाने से मिलाने का क्या सुख मिलेगा यदि आपको मेरी बात का विश्वास न हो तो आप किसी प्रेम करनेवाली स्त्री को बुलाकर और उससे पूछकर ही समझ लीजिए। यदि नायक से भूल हो जाय तो आप भौंहों से कितने दिनों तक बाँधेगी? ( भौंहें टेढ़ी करने से वे कब तक चूक न करेंगे ?)। मैं आपकी बलिहारी जाती हूँ उन वनमाली को वनमाला से बाँधो (उनका स्वागत करो, आलिंगन करो, रूठो मत)। क्या कहीं मुंह मोड़ लेने से प्रेम का रोष मारने के मान का होता है ? (महीं, मुह फेरने से क्रोध नहीं दबेगा)। यदि आप उन्हें किसी अपराध का दंड देना चाहती हैं तो मेरे कहने से उन्हें मृणालयुक्त कमल से मारिए (अपनी भुजाओं से १६-ही-धौ। न मरति-मान रति, नाम मन । भरति०-मार रिस केसीदास, रति रिस प्यारेलाल । कबहूँ-बचहू । तौ-धौं ।
पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।