पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२११

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एकादश प्रभाव २१५ साथ छूटने पर भी ऐ हृदय तू फटकर करोड़ों टुकड़े नहीं हो गया, तुझे धिक्कार है। सूचना-मन के प्रति होने से प्रच्छन्न है । श्रीकृष्ण को प्रकाश प्रवासविरह, यथा-( सवैया ) (४०४) केसव क्योंहूँ चलें चलि कोरि सँदेस कहैं फिरि पैंडक दू पर । श्रागें धरै अपनो सो के साहस पाछेही पेलि पर पग भू पर । होत जहीं तही ठाढ़े ठगे से चलौ न कह्यो परै कान्ह हितू पर । लोक की लाज किरयोन पर पै मिलान करें अधकोलक ऊपर ।१२। शब्दार्थ-कोरि = करोड़ । पैड़क दू पर = दो डग चलने पर । पेलि = बरबस । कान्ह हितू पर = प्रिय कृष्ण से । फिरचौ न परै = लोटा नहीं जाता। मिलान करै = पड़ाव डालते हैं । अधकोसक० = आधे कोस पर । भावार्थ-(सखी-वचन सखी से) कित्ती प्रकार श्रीकृष्ण चलते हैं और दो पग चलने पर ही लौटकर करोड़ों ( अनेक ) संदेश कह डालते हैं। अपने साहस से आगे को पैर रखते हैं, पर बलपूर्वक वह पृथ्वी पर पीछे ही पड़ता है तहाँ जहाँ वे ठगे से खड़े हो जाते हैं और उनसे ( साथवाली सखी या प्रेमिका से ) 'चलो' ( लौट जानो) कहते नहीं बनता। लोक लज्जावश उनसे भी लौटते नहीं बनता इसलिए वे आधे आधे कोस पर पड़ाव डालते हुए जा रहे हैं। सूचना-( १ ) सखियों तक बात पहुंच गई है ( सब जानते हैं ), अतः प्रकाश है । (२) हस्तलिखित प्रति में इसके बाद यह दोहा है- खान पान परिधान पुनि, जान जान दुति अंग । सुभ संजोग बियोग बिन जानौ सुख तिय संग ॥ श्रीकृष्णजू को विरह-भवविभ्रम, यथा-( सवैया ) (४०५) प्रेत की नारि ज्यों तारे अनेक चढ़ाइ चलै चितवै चिहुँघातो। कोदिनि सी ककुरे कर कंजनि केसव सेत सबै तन तातो । भेटतहीं बरहीं अबही तौ बरथाइ गई ही सुखै सुख सातो। कैसी करौं कहि कैसे बचौं वहुरचौ निसि आई किये मुँह रातो।१३। १२-फिरि-पुनि । पैंडक०-4ड़क ऊपर, पैड़कहू पर । सो कै-कै कान्ह०-कान्हहि तूपुर । अध-दस । १३--- चलै-चली । तो-तें । ककुरे-सकुरे । प्रबही-तबहो । हो सुखै०-सँग ही सुख, ही सुखै सुध । बचौं = जियो ।