दशम प्रभाव २०७ अंतर यह है कि प्रसंगविध्वंस में भय होता है और उपेक्षा में भय नहीं। यदि कोई सारूप्य निर्देश भयरहित होगा तो उपेक्षा होगी और भय की संभावना होगी तो प्रसंगविध्वंस । श्रीकृष्ण के पालतू पक्षियों में से शुकी का सूख जाना स्पष्ट भय का कारण है, अतः यहाँ अन्योक्ति होते हुए भी उपेक्षा न होकर प्रसंग विध्वंस ही होगा। दूसरी बात यह है कि भय पहले होता है, अात्मसाम्य काज्ञान तदनंतर । इसी से भय प्रधान होगा, आत्मसाम्य गौण । अलंकार-अन्योक्ति। ( दोहा ) (३८५) देश काल बुधि बचन तें, कल धुनि कोमल गान । सोभा सुभ सौगंध तें, सुख ही छूटत मान ।२६। शब्दार्थ-सौगंध = सुगंध । सुख ही = सरलता से । भावार्थ-देश, समय, बुद्धिपूर्वक कहे वचन, सुंदर ध्वनि, सुंदर गान, शोभा-दर्शन, अच्छी सुगंध से सहज ही मान छूट जाता है। यथा-( कबित्त ) (३८६) घननि की घोर सुनि, मोरनि को सोर सुनि, सुनि सुनि केसव अलाप अलीजन को। दामिनी दमक देखि देह की दिपति देखि, देखि सुभ-सेज देखि सदन सुबन को। कुंकुम की बास, घनसार की सुबास भयो, फूलनि की बास, मन फूलिकै मिलन को। हँसि हँसि बोले दोऊ, अनहीं मनाएँ मान, छटि गयो एकै बार राधिका रमन को ।२७) शब्दार्थ-घन = बादल । घोर ध्वनि । अलाप = राग । अलीजन = सखियाँ । दामिनी-बिजली । दमक= चमक । सुबन = रमणीय बाटिका । कुंकुम = केसर । घनसार = कपूर । फूलिकै = उत्साहित होकर । अनहीं मनाएँ = बिना मनाए ही। एकै बार एक साथ ही । राधिका रमन = राधिका और उनके रमण श्रीकृष्ण दोनो का । सूचना —'घनन की घोर' समय है (वर्षा ), 'मोरन को सोर' कल ध्वनि है. 'अलाप प्रलीजन को' कोमल गान है 'दामिनी दमक' और 'देह की 'दिपति' शोभा है, 'सुभ सेज' और 'सुबन' देश हैं, 'कुंकुमादि की सुबास' सुगंध है और हंसकर बोलना बुद्धिवचन है । २७-देह-दीप । सुभ-सुख । सदन-सुंदर। भयो-नयो, नए। बोले- मिले । अनहीं-बिनही । गयो०-गो एकहि । बार-बेर ।
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