१८२ रसिकप्रिया तासों जड़ता जी के पुत्र हैं और ये वृषभानुजी की पुत्री हैं। इन ( बड़े बाप के लाडिली- लाड़िलों) का भेद कुछ खुलता नहीं कि आखिर बात क्या है। एक ही साथ दोनो को क्या हो गया, जरा आकर तू भी देख क्यों नहीं जाती। सूचना-व्याधि के इन दो उदाहरणों में नायक और नायिका दोनो की दशा का साथ ही वर्णन कर दिया गया है, इसी से प्रकाश और प्रच्छन्न के पृथक् पृथक् दो दो उदाहरण केशव ने नहीं रखे । अथ जड़ता-लक्षण-(दोहा) (३२६) भूलि जाइ सुधि बुधि जहाँ, सुख दुख होइ समान । कहत हैं, केसवदास सुजान ।४। श्रीराधिकाजू की प्रच्छन्न जड़ता, यथा- ( सवैया ) (३३०) खरे उपचार खरी सियरी सियरे ते खरोई खरो तन छीजै। ऐसे में और करें तें कछू उपजै तौ सकेलि कहा हम लीजै। देखत हौ यह कामकली कुँभिलानिय जाति कहा अब कीजै । कौन पै जाऊँ, कहा करौं केसव कैसें जियै वह क्यों हम जीजै।४६॥ शब्दार्थ-खरे = अच्छे, अत्यंत लाभदायक । खरी = अत्यंत । सियरी शीतलता। सियरे तें= शीतल से। खरोई खरी-अत्यधिक, और अधिक । छीज = क्षीण होता है। खरे उपचार० = अच्छे उपचारों से शरीर में अत्यंत शीतलता होती है, पर यहाँ तो शीतोपचार से और भी शरीर क्षीण होता चला जा रहा है । सकेलि कहा हम लीजै० = हम क्या भंजा लेंगी, क्या पाएँगी, हमें क्या मिलेगा? सकेलना = एकत्र करना, पाना। ऐसे में =ऐसी दशा में कोई और उपचार करने से कहीं कुछ का कुछ न हो जाय तो हम लोग कौन सा भाँड़ा भर लेंगी ? कामकली = नायिका । जीज- जीवित रहें, जियें । (३३१) श्रीराधिकाजू की प्रकाश जड़ता, यथा-( सवैया ) अँखियानि मिली सखियानि मिली पतियाँ बतियानि मिली तजि मौनैं । ध्यान-विधान मिली मनहीं मन ज्यों मिलै रॉक मनौ मन सौ. । केसव कैसहुँ बेगि चलौ नतु हैहै वहे हरि जो कछु होनैं । पूरन प्रेम-समाधि लगे मिलि जैहै तुम्हें मिलिहौ तब कौनँ ।५० शब्दार्थ-पतियाँ पत्रिका । पतियां बतियानि = पत्रिका की बातों के द्वारा । ध्यान-विधान = ध्यान करने के ढंग से । भावार्थ-(सखी-वचन नायक से) वह स्वयम् अपनी आँखों से तुमसे मिली (माँखों से देखना जब संभव नहीं रहा तो) सखियों द्वारा मिली (अर्थात् सखियों ४८-केसवदास-केसवराय । ४६-करें-किये। हो-ही। कामकली- -पतियां०-पतियानि मिली बतियाँ । रांक-एक । मन-मिलि, पय । चलो-मिलो। नतु-तन । लगे-मिलें । कामलता। ५०-
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