पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१६४

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अष्टम प्रभाव १६७ श्रीराधिकाजू की प्रकाश चिंता, यथा -(कबित्त) (२९८) प्रेम भय भूप रूप सचिव सँकोच सोच, बिरह बिनोद पील पेलियत पचिकै । तरल तुरंग अवलोकनि अनंत गति, रथ मनोरथ रहैं प्यादे गुन गचिकै । दुहूँ ओर परी जोर घोर घनी केसौदास, होइ जीति कौन की को हारै जिय लचिकै । देखत तुम्हें गुपाल तिहि काल उहि बाल, उर सतरंज की सी बाजी राखी रचिकै ११७ शब्दार्थ-भूप-राजा, बादशाह । रूप = भाँति । सचिव मंत्री, वजीर । पील-हाथी, फील । पेलियत =जबर्दस्ती चखाया जाता है। पचिकै परेशान होकर । तरल = चंचल । तुरंग = घोड़ा । अवलोकनि - चितवन । अनंत गति = अनेक प्रकार की चालें चलनेवाला; अनेक प्रकार के कटाक्षपात करने वाली । गचिकै भली भाँति किलेबंदी करके। लचिकै दबकर । बाल- बाला, नायिका। भावार्थ-( सखी की उक्ति नायक से ) हे गोपाल, तुम्हें देखकर उसी समय से उस नायिका ने शतरंज की सी बाजी बिछा रखी है। प्रेम और भय राजा ( बादशाह ) हैं, संकोच और सोच फरजी ( वजीर ) हैं । विरह और विनोद हाथी हैं, जो परेशान होकर चलाए जाते हैं। चितवन तथा अनेक गति ही चंचल घोड़े हैं, मनोरथ हो रथ हैं, गुण ही प्यादे हैं जो पक्की मोरचे- बंदी किए हुए हैं। दोनो ओर से जोरशोर की बाजी ( लड़ाई ) हो रही है । देखो किसकी विजय होती है और कौन दबकर (मात होकर) हारता है । सूचना-सरदार की टीका में उपमेय और उपमान पक्ष की संख्याओं की गिनती मिलाने के लिए कई प्रकार के अर्थ पेश किए गए हैं। (१) रूप को वजीर माना गया है, दो आकृति होने से दोनो वजीरों से उसकी संगति बैठ जाती है। संकोच, सोच, विरह, विनोद चार हाथ हो गए। इन चारो अवस्थाओं की चितवनें घोड़े हो गईं, इन्हीं चारो की दशा के मनोरथ (अभिलाष ) रथ ( ऊँट) हो गए। बादशाह से घोड़े तक सोलह हुए । इन सोलहौ के गुण प्यादे हो गए । (२) विरह-विनोद या विप्रलंभ चार प्रकार का होता है-पूर्वानुराग, मान, प्रवास और करुण। ये चारो हाथी हुए। अवलोकनि अर्थात् दर्शन चार प्रकार के होते हैं-श्रवण, चित्र, स्वप्न और प्रत्यक्ष । ये चार घोड़े हैं। मनोरथ यो नीति चार प्रकार की साम, दान, २७ -पोल-फील । अवलोकनि-अबिलोकनि । प्यादे-पेदा, पै वा । हारै- रहे । तिहि तेही।