११ अष्टम प्रभाव शब्दार्थ-संबंध की=संबंध में पड़नेवाली ( भगिनी आदि ) । मित्र = मित्र की पत्नी। द्विजराज = ब्राह्मण की पत्नी। राखि०= दुख पड़ने पर जिसने रक्षा की हो उसकी पत्नी और जिसका या जिसने पालन-पोषण किया हो उसकी पत्नी । माज = भागो, बचना चाहिए (प्रेम नहीं करना चाहिए)। (२८०) अधिक बरन अरु अंग घटि, अंत्यज जन की नारि । तजि बिधवा अरु पूजिता रमियहु रसिक बिचार ।४३। शब्दार्थ-अधिक बरन = अपने से उच्च वर्ण की। अंग घटि-अपनी जाति से नीची जाति की। अंत्यज-चांडाल । जन =दास । (२८१) यह संजोग सिँगार की केसव बरनी रीति । विप्रलंभ सिंगार की रीति कहौं करि प्रीति ।४४। इति श्रीमन्महाराजकुमारइंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायामष्ट- नायिकासंभोगशृंगारवर्णनं नाम सप्तमः प्रभावः ॥७॥ अष्टम प्रभाव अथ विप्रलंभशृंगार-लक्षण-( दोहा ) (२८२) बिछुरत प्रीतम प्रीतमा होत जुरस तिहिं ठौर । बिप्रलंभ सिंगार कहि बरनत कबि-सिरमौर ।१। शब्दार्थ-प्रीतम = प्रियतम, नायक । प्रीतमा = प्रियतमा, नायिका । अथ विप्रलंभशृंगार भेद-वर्णन--(दोहा) (२८३) बिप्रलंभ सिंगार को चारि प्रकार प्रकास । प्रथम पूर्व-अनुराग पुनि, करुना, मान, प्रवास ।२। तात्पर्य--विप्रलंभ के भेद-पूर्वानुराग, मान, प्रवास और करुण विरह । अथ पूर्वानुराग-लक्षण--( दोहा ) (२८४) देखतहीं दुति दंपतिहि, उपजि परत अनुराग । बिन देखे दुख देखिये, सो पूरब अनुराग ।३। शब्दार्थ-दुति = कांति, सौंदर्य । दुख देखना = दुख पाना । श्रीराधिकाजू को प्रच्छन्न पूर्वानुराग, यथा--(कबित्त ) (२८५) फूल न दिखाव सूल फूलत है हरि बिनु, दूरि करि माल बाल ब्याल सी लगति है। ४३-प्रत्यज-अक्षत। १--प्रीतमा--प्रीतमहि । सिंगार०--तासों कहैं । बरनत--केसव कबि, कहत रसिक । २-वर्णन-कथनम् । ३- देखिय-देखई ।
पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१५८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।