पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२६

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१२८ रसिकप्रिया शब्दार्थ-अनुकरण = पीछे आनेवाले । प्रीति-विधान = प्रेम के विधान में अथ स्थायी भाव-वर्णन-(दोहा) (१८६) रति हांसी अरु सोक पुनि क्रोध उछाह सुजान । भय निंदा बिस्मय सदा थाई भाव प्रमान ! शब्दार्थ-रति = प्रेम । हाँसीहास । उछाह = उत्साह । निंदा = अर्थात् जुगुत्सा (घृणा)। विस्मय = आश्चर्य । अथ सात्त्विक-भाव-वर्णन- दोहा ) (१९०) स्तंभ स्वेद रोमांच सुरभंग कंप बैबन्य । आँसू प्रलय बखानिये आठौ नाम अनन्य ।१०। शब्दार्थ-सुरभंग = स्वरभंग । बैबन्य = बैवर्ण्य । अनन्य - जो किसी दूसरे का (नाम) न हो। अथ व्यभिचारी भाव-वर्णन-( दोहा ) (१६१) भाव जु सबही रसन में उपजत केसवराय । बिना नियम तिन सों कहैं ब्यभिचारी कबिराय ।११। शब्दार्थ-बिना नियम० = जो किसी नियम के बिना सभी रसों में प्रकट हो । तिनतों - तिनको, उन्हें । अथ व्यभिचारी-नाम-वर्णन-(दोहा) (१६२) निर्वेद ग्लानि संका तथा, आलस दैन्य रु मोह । स्मृति धृति ब्रीड़ा चपलता श्रम मद चिंता कोह ।१२। शब्दार्थ-कोह =(क्रोध ) रोष, अमर्ष । (१९३) गर्ब हर्ष आवेग पुनि, निंद्रा नींद-बिबाद । जड़ता उत्कंठा सहित, स्वप्न प्रबोध विषाद ॥१३॥ शब्दार्थ-~नींद-बिबाद - नींद का विवाद, नींद की कथा अर्थात् निद्रा । प्रबोध-विबोध, जागरण । (१६४) अपस्मार मति उग्रता, त्रास तर्क औ ब्याधि । उन्माद मरन अवहित्थ है, व्यभिचारी जुत प्राधि ।१४) शब्दार्थ-... अपस्मार-मिरगी । तर्क = वितर्क । ब्याधि = शारीरिक कष्ट । प्राधि- मानसिक कष्ट । सूचना-'विवाद' का अर्थ स्वतंत्र करने से तर्क में पुनरुक्ति हो जाती है। ६-हाँसी-सुहास । सु-हि । सदा-सहित । प्रमान - बखानु । १०-बैबन्य -बैबर्न । आँसू०-अश्रुप्रलाप । बखानिये-बखानिज । अनन्य-सुबर्न, न अन्य । ११-कहैं-कहत । १४–त्रास-पास । प्रौ-प्रति । उन्माद-प्रवाहित्य भयः आदि दै। अवाहित्य-भय आदि दै। है०-तात होइ ।