पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२१

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पंचम प्रभाव १२३ गावति बजावति नचति नाना रूप करि, जहाँ तहाँ उमँगत श्रानँद को श्रोनो सो। साँवरे की सूनी सेज सोवत ही राधिकाजू, सोए आनि साँवरेऊ मानि मन गोनो सो ३२। शब्दार्थ-बल- बलराम । राति जागिबे को रतजगा करने के लिए। सोनो सो-सोने सा, पीत वर्ण । मंदिरनि घरों में। अध= नीचे का खंड। मध = मध्य का खंड । ऊरध%3D (ऊर्ध्व ) ऊपर का खंड । कोनो सो = कोना तक, थोड़ी जगह भी। गावति बजावति० = स्त्रियाँ गाती बजाती अनेक प्रकार से नृत्य करती थीं। ओनो - तालाब में से पानी निकलने का मार्ग, निकास ! उमंगत० = आनंद का प्रवाह सा बह रहा था। सांवरे = श्रीकृष्ण । मानि मन० = गौना सा मानकर, जैसे गौने में पति पत्नी के पास सो रहता है । अलंकार--उपमा, उत्प्रेक्षा । व्याधि मिस को मिलन, यथा-( सवैया ) (१७२) सोधि निदाननि दान दिये उपचार विचार किये न घिरानी । बेद के सासन ब्याधि-बिनासन होमहुतासनहू न सिरानी । केसव बेगि चलो बलि बोलति दीन भई बृषभानु की रानी । आए हौ मेटि मरू करिकै बहुरयौ उनके वह पोर पिरानी ।३३। शब्दार्थ-निदान = आदिकरण । सोधि निदाननि = व्याधि के निदानों का शोध कर, व्याधि के मूल कारण का पता लगाकर । दान दए = दान दिए (धर्मेण हन्यते व्याधिः)। उपचार -चिकित्सा। बिचार = व्यवस्था । उपचार-विचार - औषधोपचार की व्यवस्था । न धिरानी = कम नहीं पड़ी, धीमी नहीं हुई । सासन = ( सं० शासन ) आज्ञा । ब्याधि = रोग । हुतासन =अग्नि । सिरानी = ठंढी पड़ी, दूर हुई। दीन भई = दुःखित हुई। मरू करिकै = कठिनाई से। भावार्थ-( सखी-वचन नायक से ) व्याधि के कारणों की शोध कर (ग्रहों की शांति के लिए ) दान दिए गए। चिकित्सा की व्यवस्था की गई। पर पीड़ा धीमी नहीं पड़ी । व्याधि को नष्ट करने के लिए वेद ( शास्त्र ) की माज्ञा के अनुकूल अग्नि में होम भी किया गया, पर वह न हटी। बृषभानु की पत्नी अत्यंत कातर हो रही हैं, उन्होने आपको बुलवाया है, कृपा करके शीत्र ही चलिए । बड़ी मुश्किल से आप जिस पीड़ा को ( एक बार पहले ) दूर कर आए थे, वही पीड़ा उनको फिर होने लगी है। अलंकार-पर्यायोक्ति । ३२-प्रध-प्रायो। अधo-मधि अध। कोऊ-काहू, कहूँ। ३३-न घिरानी-नंदरानी । सिरानी-हिरानी । बेगि-क्यों हूँ । हो-हे ।