१२२ रसिकप्रिया प्रभाव ही पूरा पड़ सका, दोनो स्थितियों की संधि दिख रही है । अतः कहना पड़ता है कि उनके जो नेत्र जलज की भांति खिले थे उनमें बादलों का सा घिराव हो मया ( नेत्रों में आनंदाश्रु आ गए)। निशि चार को मिलन, यथा-( सवैया ) (१६६) एक समै सब देखन गोकुल गोपी-गोपाल-समूह सिधायो । राति है आइ चले घर को दसहूँ दिसि मेह महा मढ़ि आयो। दूसरो बोल ही तें समुझे कहि केसव यों छिति में तम छायो। ऐसे में स्याम सुजान बियोग बिदा के दियो सु कियो मनभायो ।३०। शब्दार्थ-मेह = मेघ, बादल । मढ़ि पायो = छा गया। दूसरो०-ऐसा घना अंधकार था कि कोई दिखाई नहीं पड़ता था, बोलने से ही किसी का ज्ञान होता था। छिति = क्षिति, पृथ्वी । बियोग = वियोग की वेदना । कियो यथेच्छ और यथेष्ट गोपियों के साथ कामक्रीड़ा की। अति भय को मिलन, यथा-( कबित्त) (१७०) जानि ओगि लागी बृषभान के निकट भौन, दौरि ब्रजबासी चढ़े चहूँ दिसि धाइकै । जहाँ तहाँ सोर भारी भीर नर-नारिन की सब ही की छूट गई लाज हाइ भाइ कै । ऐसे में कुँवर कान्ह सारी सुक बाहिर के, राधिका जगाई और जुवती जगाइकै । लोचन बिसाल चार चिबुक कपोल चूमि, चंपे की सी माला लाल लीनी उर लाइकै ।३१। शब्दार्थ-जानि = पता पाकर । वृषभान = वृषभानु, राधिका के पिता । भौन-भवन । चढ़े जा पहुँचे । चहुँ दिसि = चारों ओर से । हाइ भाइ% हावभाव ( सुख की स्थिति )। कै:- के साथ। सारो- सारिका, मैना। चिबुक = ठोंढ़ी। उत्सव को मिलन, यथा -(कबित्त) (१७१) बल की बरस गाँठि ताकी राति जागिबे कौं, आई ब्रजमुंदरी सँवारि तन सोनो सो। केसौदास भीर भई नंदजू के मंदिरनि, अध मध ऊरध बच्यो न कोऊ कोनो सो। ३०-सिधायो-'सिधाए' आदि । बोल-बोलतहीं। ३१-जानि--जानी, देखो । बृषभान०-वृषभानु जू के मंदिरनि । भारी-मई । हाइ भाइ-हाइ हाइ । सारो सारी । को सी-कैमी । 1
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