रसिकप्रिया नायक-( तुम्हारी तो बात ही समझ में नहीं आती. तो भी यह बत- लामो कि) तुम्हारे हृदय में ( मेरे लिए ) प्रेम तो है न ? नायिका-क्या जाने है या नहीं। नायक -इतने पर भी प्रेम नहीं है। नायिका-( मान लीजिए नहीं है ) तो क्या आप झगड़ा करेंगे ? नायक -मुझसे अब ऐसा व्यवहार और ऐसी बातें कह रही हो ? नायिका-जो मैंने कहा सो कहा । आप क्या कर लेंगे ? सूचना- -'नायिका के टेढ़े उत्तर सखियों को दिखाने के लिए हैं, वह नायक को बतला रही है कि मेरी इच्छा विहार की है। ऐसा अर्थ सरदार ने अपनी टीका में किया है। इसलिए 'अरिहौ' का अन्य अर्थ 'सकोगे', 'गरे परिहौ' का अर्थ 'मॅटोगे', 'लरिहौं' का 'विहार करोगे' आदि किया है । अलंकार--गूढोक्ति । अन्यच्च, यथा-( कबित्त ) (१५७) केसीदास घर घर नाचत फिरत गोप, एक परे छकि ते मरेई गुनियत है। बारुनी के बस बलदाऊ भए सखा सब, संग लै को जैये दुख सीस धुनियत है। मोहिं तौ गए ही बने दीह दीपमाला पाइ, गाइनि सँवारिबे को चित्त चुनियत है । जौ न बसौं लोलिनैनि लेरुवा मरहिं सब, खरिक खरेई आज सूने सुनियत हैं ।१८। शब्दार्थ-छकि = नशे में चूर । बारुनी मदिरा, शराब । दीह दीपमाला = बड़ी दीवाली | सँवारिबे कौं = एकत्र करने के लिए। चुनियत है = चाहता है । लेरुवा = बछड़े । खरिक = गोशाला। भावार्थ-जितने गोप हैं घरघर नाचते फिरते हैं, वे नशा पी पीकर ऐसे बेहोश हो गए हैं कि उन्हें मरा ही समझना चाहिए। बलदेव तथा सभी सखा शराब के वश में हैं ( वे सब उसी के नशे में चूर हैं )। अब मैं साथ में लेकर जाऊँ भी तो किसे, इसी दुख से सिर पीट रहा हूँ। मेरे जाने से ही बनेगा, बड़ी दीवाली प्रा गई। गायों को एकत्र करना ही उचित है । चंचल नयनी, यदि मैं गोशाला में आकर नहीं बसता तो बछड़े सबके सब मर जाएँगे क्योंकि गायों के भी न रहने से गोशाला में अत्यंत सन्नाटा है। १८-एक--ऐसे । परे-रहे । भए-कोन्हें । लै को-लै के, को ले। जैये-- जाउँ । दुख-काहि, देखे । गए हों-गहेई । दोह-देह । संवारिबे--सिंगारिखे । सौं-मिले, मेलौं । मरहि०-मरेही प्यासे । खरिक-खरक, दरिक । C
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