चतुर्थ प्रभाव १०७ छोड़न, कहत तनु तनक न छूटै लाज, धन मीत राखि दोऊ. कोबिद कहावै को। सोच को सँकोचहू को पूरब-पछिम पंथ, केसौदास एक काल एक 'जन धावै को। दुख-सुख दूरीदुरा दूरिहूँ तें मेरे मन, जैसी सुनी तैसी तोहि आँ खिन दिखावै को।१७। शब्दार्थ-कोबिद = पंडित । दूरीदुरादूर करके, हटाकर । भावार्थ-( नायिका की उक्ति मन से ) हे मन, तू लोकों तक का उलं- घन तो कर जाता है, पर लोकमर्यादा का उल्लंघन किया ही नहीं जा सकता । तू तो सबको समझाता है, तब तुझे कौन समझाए ? तू शरीर छोड़ने को कहता है पर लज्जा तो थोड़ी भी तुझसे छूटती नहीं (शरीर क्या छोड़ा जाएगा?)। धन को भी और मित्र ( की मित्रता ) को भी दोनो को बनाए रखकर कौन पंडित कहला सकता है ? सोच और संकोच का पूर्व और पश्चिम (विपरीत) मार्ग है। इन दोनो मार्गों पर एक ही समय में एक ही व्यक्ति कैसे दौड़ सकता है ? इसलिए दुख सुख को दूर करके ऐ मेरे मन, जैसी छवि उनकी सुन रखी है वैसी दूर से ही सही तुम्हें प्रांखों से कौन दिखा सकता है ? ( उनके श्रवणदर्शन हो रहे हैं, पर प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होते )। श्रीकृष्ण को प्रकाश श्रवणदर्शन, यथा-(कबित्त) (१३८) निपट कपट हर प्रेम को प्रकट कर, बीस बिसे बसीकर कैसें उर आनिये । काम को प्रहरषन कामना को बरषन, कान्ह को सँकरषन सब जग जानिये । किधौं केसौदास महि मोहनी को किधौं ब्रजबालनि को दूषन बखानिये । सुनतहीं छूटथो धाम बन बन डोलें स्याम, राधे तेरो नाम कै उचाटमंत्र मानियै ।१८। शब्दार्थ-वीस बिसे = पूर्ण रूप से । सँकरषन = खींचनेवाला । भावार्थ-(सखी की उक्ति नायिका से) यह अत्यंत कपट को हरनेवाला, प्रेम को प्रकट करनेवाला और पूर्णरूप से वश में करनेवाला है, हृदय में कैसे धारण किया जा सकता है ? काम को प्रहर्षित करनेवाला, कामनाओं का भूषन है, १५-महि-
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