ही शिथिल कर देगा तो, फिर इस जगत मे अपने कुलव्रत का पालन और कौन करेगा?
हृदय में स्थित सरस्वती के वाहन राजहंसो ने मानो जिनको । शिक्षा दी है, ऐसे क्षीर-नीर-विभाग करने मे दक्ष कविजनो की महिमा खूब जागरूक है।
हस जिस तरह क्षीर ग्रहण कर लेता है और उसमे सिला हुआ पानी पडा रहन देता है, वैसे ही यह भी बध करने योग्य मुझे मारेगा और रक्षणीय द्विज की रक्षा करेगा।
लोगो के मुँह से भली-बुरी बाते सुन कर बुद्धिमान् आदमी अच्छी बात को वैसे ही ग्रहण कर लेता है, जैसे हंस जल मे से दूध को ग्रहण कर लेता है।
यजुर्वेद के ततिरेय ब्राह्मण के दूपरे अध्याय मे एक वाक्य है। उसका मतलब है-जिस तरह क्रौञ्च-पक्षी जल और दूध को अलग-अलग करके दूध का ही पान करता है, उसी तरह इन्द्रभी जल से सोमरस को अलग कर के उसका पान कर लेता है। इसकी टीका सायनाचार्य ने इस प्रकार की है-
क्षीरपात्रे स्वमुखे प्रक्षिपते सति मुखगतरससम्पत्क्षिीरांशो जलांशश्चौभौ विविच्यते।