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रसज्ञ-रञ्जन
 

जितनी बिलासिनियों है, उनके लिये वे सभी दुर्लभ हैं। कृपा करके अब तू मुझे बतलादे कि उनमें से तू किसे अपने पाणिपीड़न से सबसे अधिक भाग्यवान् बनाना चाहती है। मेरी ये मीठी-मीठी बातें सुनकर तू मुझे कहीं पिजड़े के शुक के समान, वृथा बकवादी मत समझना। मै ब्रह्मा का वैज्ञानिक हूं। मेरे लिए दुनियाँ में कोई वस्तु दुष्कर नहीं।"

यह सुनकर उस मृगाक्षी को मेरी बातों पर विश्वास आ गया और उसने उस फलक को, जिस पर तेरी तस्वीर थी बड़े प्रेम से अपनी छाती से लगाया। तुझमें, इस तरह अनुरुक्त हुई उस बाला को देखकर मैंने अपना प्रयास सफल समझा। मैंने कहा—"यह वीर युवक मधु है; तू माधवी है। यह कुमुद बन्धु है तू कौमदी है। ऐसी अनुपमेय जोड़ी का सम्बन्ध इस तरह चिरकाल तक सुखकारक हो। इस तरह उसको विश्वास दिला-कर तेरे पास आने की इच्छा से ज्यों ही मैं उड़नेको हुआ त्योंही उसने अपने कम्बु-कण्ठ से उतार कर, यह हार मेरे गले में डाल दिया। चन्द्रमा की चन्द्रिका से भी अधिक निर्मल, तेरी प्रिया की दूसरी हृदय-वृत्ति के समान, यह मुक्तालता तेरे हृदय को आनन्दित करे।"

इस माला को नल ने बड़े आदर से लिया। उसको स्पर्श करते ही उसका शरीर कण्टकित हो आया। उसे उस समय यह भावना हुई कि एक छेद होने के कारण इसको मेरी प्रियतमा के अङ्ग का स्पर्श हुआ। पर शायक के पञ्चशायकों से किये गये सैकड़ों छेदों को हृदय मे धारण करके भी मुझे अभी तक उसके दर्शन तक नहीं हुए। में बड़ा ही अभागा हूँ। कुछ देर तक वह ऐसी ही ऐसी चिन्ताओं में निमग्न रहा। जब वह उस चिन्ता-समुद्र से उन्मज्जित हुआ तब, आनन्द से पुलकित होकर, अपने