पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/७०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७०
रसज्ञ-रञ्जन
 

कर रही है; कही कोई अपने प्रेम-पात्र के पास गई हुई सखी के लौटने मे विलम्ब होने से कातर होकर आँसुओं की धारा से आँखो का काजल बहा रहा रही है!!! यही बाते विलक्षण उक्तियों के द्वारा, इस प्रकार की पुस्तकोमे विस्तार पूर्वक लिखी गई हैं। सदाचरण का सत्यानाश करने के लिये या इससे भी बढ़ कर कोई युक्ति हो सकती है ? युवको को कुपथ पर ले जाने के लिये क्या इससे भी अधिक बलवती और कोई आकर्षण शक्ति हो सकती है ? हमारे हिन्दी साहित्य में इस प्रकार की पुस्तको का आधिक्य होना हानिकारक है, समाज के चरित्र की दुर्बलता का दिव्य-चिन्ह है । हमारी स्वल्य बुद्धिके अनुसार इस प्रकारकी पुस्तक का बनाना शीघ्रही- बन्द हो जाना चाहिये, और यही नहीं, किन्तु आजतक ऐसी-ऐसी जितनी इस विषय की दूंपित पुस्तक बनी है उनका वितरण होना भी बन्द हो जाना चाहिए। इन पुस्तक' के बिना साहित्यको कोई हानि नहीं पहुँचेगी; उलटा लाभ होगा। इसके न होनेसे भी समाज का कल्याण है। इनके न होनेसे ही नववयस्क मुग्धमति युवा-जन का कल्याण है। इनके न होनेसे ही इनके वनाने और बेचने वालो का कल्याण है।

जिस प्रकार नायिकाओंके अनेक भेद कहे गये है और भेदा तुमार उनकी अनेक चेप्टाएँ वणन की गई है, उसी प्रकार पुरूप' के भी सेद और चेष्टा-बै क्षण्य का वर्णन किया जा सकता है। जब नवोढ़ा और विश्रव्य नवोढ़ायिका होती है तब नवोढ़ज्ञऔर विश्रव्य-नवोढ़ नायक भी हो सकते है। वासकसज्जा, विप्रलब्धा और कलहान्तरिता नायिकाके ममान वा कमज्ज, विप्रलव्ध और कलहान्तरित नायक होने में क्या आपत्ति हो सकती है? कोई नही। क्या स्त्री/ही अज्ञात-यौवना होती है ? पुरुष अहात-यौवन नहीं होता "रसमजरी"वाले कहते हैं कि स्वभाव