यद्यपि एक ग्रामीण का है तथापि इसमें चमत्कार है। कवि को ऐसे ही चमत्कार लाने का उद्योग करना चाहिए।
क्षेमेन्द्र ने दस प्रकार के चमत्कार बतलाये हैं और सब के उदाहरण भी दिये है। पर प्रबन्ध बढ़ जाने के भय से हम उनका निदर्शन नहीं करते।
गुण-दोष-ज्ञान
काव्य के पाँच प्रकार है—सगुण, निर्गुण, सदोष, निर्दोष और गुण-दोष-मिश्रित। गुण तीन प्रकार के है—शब्द वैमल्य, अर्थ वैमल्य और रस वैमल्य। दोष भी तीन प्रकार के—शब्द-कालुष्य, अर्थ-कालुष्य, रस-कालुष्य। इन सबके लक्षण इनके नाम ही से व्यक्त है। इसलिए उदाहरण नहीं दिये जाते।
"कालिदास की निरकुशता" नाम के लेख में शब्द, अर्थ और रस-कालुष्य के कई उदाहरण दिये गये है। काव्य के गुण-दोष के सम्बन्ध में और भी कितनी ही बातों का विचार उस लेख में किया गया है। उसे देखने से पाठकों को क्षेमेन्द्र का अभिप्राय समझने में बहुत कुछ सहायता मिल सकती है। कवि के निर्दिष्ट दोषों से बचने का यत्न करना चाहिए। परन्तु बचेगा उनसे वहीं, जो उन्हें जानता होगा। अतएव कविता विषयक गुण-दोषों का ज्ञान प्राप्त करना भी कवि के लिए आवश्यक है।
परिचय-चरुता
कवि को मब शास्त्रा, सब विद्याओं और सब कलाओं आदि से परिचत होना चाहिए। क्षेमेन्द्र की आज्ञा है कि तक, व्याकरण नाट्य-शास्त्र, काम शास्त्र, राजनीति, महाभारत, रामायण, वेद-पुराण, आत्म-ज्ञान, धातुवाद, रत्न परीक्षा, वैदिक, ज्योतिष, धनुर्वेद, गज-तुरङ्ग, पुरुष-परीक्षा, इन्द्रजाल आदि सब विषयों का ज्ञान कवि को सम्पादन करना चाहिए। कवियों को पग-पग पर