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२-कवि वनने के लिए सापेक्ष साधन
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प्रतिभा को प्रखर करना चाहिए। उस समय कुछ कविता करनी चाहिए; प्राणियो के स्वभाव की परीक्षा करनी चाहिए; समुद्र-तट और पर्वतो की सैर करनी चाहिए; सूर्य, चन्द्रमा और तारागणों के स्थान और उनकी गति आदि का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए; सब ऋतुओं की विशेपता और उनका भेद समझना चाहिए सभाओं में जाना चाहिए; एक बार लिखी हुई कविता का संशो- धन दो-तीन दके करके उसे खूब परिमार्जित करना चाहिए।

सुकवि होने की इच्छा रखने वाले के लिए अभी और भी बहुत से काम है। उसे पराधीनता में न रहना चाहिए, अपने उत्कर्ष पर गर्व न करना चाहिए, पराये उत्कर्ष को सहने की आदत डालनी चाहिए,दूसरे की श्लाघा सुनकर उसका अभिनन्दन करना चाहिए,अपनी श्लाघा सुनने में संकोच करना चाहिए,व्युत्पत्ति के लिए शिक्षा या विद्या-बृद्धि के लिर-सब की शिष्यता स्वीकार करने को तैयार रहना चाहिए;मन्तुष्ट रहना चाहिए,सत्वशील बनना चाहिए;किसी से याञ्चा न करनी चाहिए, ग्राम्य और अश्लील बात मुँह से न निकालनी चाहिए, निर्विकार रहना चाहिए; गाम्भीर्य धारण करना चाहिए, दूसरे के द्वारा किये गये आक्षेप सुन कर बिगड़ना न चाहिए और किसी के सामने दीनता न दिग्वानी चाहिए।

कवि के लिए क्षेचन्द्र ने इस तरह की शन शिक्षाये दी हैं. पर उनमें से हमने यहाँ कुछ ही का उल्लेख किया है, सब का नहीं। इसइन शिक्षायो या उरदशो पर विचार करने से पाठको को मालूम होगा कि कवि-त्रर्म कितना कठिन है। विधाना की मारी सृष्टि। का ज्ञान कवि को होना चाहिए-लोक में जो कुछ है सत्र से उसे अभिज्ञता प्राप्त करनी चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों को खुद देखना और प्राणियो के स्वभाव से भी उसे परिचित होना चाहिए। ये सब बातें इस समय कौन करता है? फिर कहिए, कोई कवि