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१-कवि-कर्त्तव्य
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लक्षण और उमका चित्र देखने से लाभ ? अथवा दीपक अल- क्षार के मूक्ष्म से सूक्ष्म भेदो को जानने का क्या उपयोग हिन्दी में ऐसे कितने काव्य हैं जिनमे से सब भेद पाये जाते हैं? हमारी अल्प बुद्धि के अनुसार रस कुसुमाकर और जसवन्तजसो (1) भूषण के समान ग्रन्यो की, इस समय,आवश्यकता नहीं । इनके स्थान मे यदि कोई कवि किनी आदर्श पुरुप के चरित्र का अवलम्बन करके एक अच्छा काव्य लिखता तो उससे हिन्दी-साहित्य को अल. य लास होता। कनिष्ठा और ज्येठा का भेद और उनके चित्र देखे तो क्या और न देखे तो क्या ? और उत्प्रेक्षा अलङ्कार का लक्षण नामानुसार निद्ध हो गया तो क्या ओर न सिद्ध हुआ तो क्या? नायिकाओ के भी झगड़ने में उलझने से हानि के अतिरिक्त लाभ को कोई सम्भावना नही। हिन्दी काव्य की हीन दशा को देख कर कवियो को चाहिए कि वे अपनो विद्या, अपनी बुद्रि और अपनी प्रतिभा का दुरुप-'योग इस प्रकार के ग्रन्थ लिखने मे न करें। अच्छे काव्य लिखने का उन्हे प्रयत्न करना चाहिए। आजकार, रस और नाटिका-निरूपण वहुत हो चुका।

इन समय, कवियो का एक दत कवे-समाजो और ककि- मण्डलो में बद्ध होकर समस्या पूर्ति करने में व्यग्र होरहा है। इन पूर्तिकारों में से कुछ को छोड कर शेष, कविता के नाम की बड़ी ही अवहेलना कर रहे हैं। इनको नाहिए कि बिना योग्यता सम्पादन किये सम या-जा करने के माडे में न पड। अच्छी समन्या पूर्ति करना अनावारण प्रतिभावान का काम है। एक साधारण कवि अग्ने मनोनुकत्त विषय पर एक ही घडी में चाहे ५० पद्य लि व डाले और वे ना चाहे अभी हा, परन्तु किनी समस्या के टुकड़े पर अच् कवेता काने में वह शायद। ही नफज-मन्मेत्य होगा। समस्या पूर्ति के लिए आग व कौरान